पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२२५

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- २२६ मानसरोवर हो। कुछ पुराने ख़याल के आदमी हैं । मेरी तो उनसे एक दिन भी न निभती। हाँ, तुमसे निभ जायगी। यदि मेरे पति ने मेरे साथ. यह बर्ताव किया होता-अकारण मुझसे रूठे होते-तो मैं जिंदगी भर उनकी सूरत न देखती। अगर कभी आते भी तो कुत्तों की तरह दुत्कार देती। पुरुष पर सबसे बड़ा अधिकार उसकी स्त्री का है। माता पिता को खुश रखने के लिए वह स्त्री का तिरस्कार नहीं कर सकता। तुम्हारे ससुरालवालों ने बड़ा घृणित व्यवहार किया । पुराने खयालवालों का ग़ज़ब का कलेजा है, जो ऐसी बाते सहते हैं। देखो न उस प्रथा का फल, जिसकी तारीफ करते तुम्हारी ज़बान नहीं थकती। वह दीवार सड़ गई है। टीपटाप करने से काम न चलेगा। उसकी जगह नये सिरे से दीवार बनाने की ज़रूरत है। अच्छा, अब कुछ मेरी कथा भी सुन लो। मुझे ऐसा सदेह हो रहा है कि विनोद ने मेरे साथ दगा की है। इनकी आर्थिक दशा वैसी नहीं, जैसी मैने समझी थी। केवल मुझे ठगने के लिए इन्होने सारा स्वाग भरा था। मोटर माँगे की थी, बंगले का किराया अभी तक नहीं दिया गया, फरनिचर किराये के थे। यह सच है कि इन्होंने प्रत्यक्ष रूप से मुझे धोखा नहीं दिया । कभी अपनी दौलत की डींग नहीं मारी, लेकिन ऐसा रहन-सहन बना लेना, जिससे दूसरों का अनुमान हो कि वह कोई बड़े धनी आदमी हैं, एक प्रकार का धोखा ही है। यह स्वांग इसी लिए भरा गया था कि कोई शिकार फेस जाय । अब देखती हूँ कि विनोद मुझसे अपनी असली हालत को छिपाने का 'प्रयत्न किया करते हैं। अपने ख़त मुझे नहीं देखने देते, कोई मिलने आता है, तो वह चौंक पड़ते हैं और घबराई हुई आवाज़ मे बैरा से पूछते हैं, कौन है ? तुम जानती हो, मैं धन की लौंडी नहीं। मैं केवल विशुद्ध हृदय चाहती हूँ। जिसमें पुरुषार्थ है, प्रतिभा है, वह आज नहीं तो कल अवश्य ही धनवान् होकर रहेगा। मैं इस कपट-लीला से जलती हूँ। अगर विनोद अपनी कठि- नाइयां कह दें, तो मैं उनके साथ सहानुभूति करूंगी, उन कठिनाइयों को दूर करने मे उनकी मदद करूँगी। यों मुझसे परदा करके यह मेरी सहानुभूति और सहयोग ही से हाथ नहीं धोते, मेरे मन में अविश्वास, द्वेष और क्षोभ का बीज बोते हैं। यह चिंता मुझे मारे, डालती है। अगर इन्होंने अपनी