पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१९१

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१९२ मानसरावर से दुर्गापाठ कराऊँगा । श्राज तक कभी ऐसी शका न हुई थी । तुमसे क्या कहूँ, मालूम होता है...होगा, उस बात को जाने दो । यहाँ बड़ी गरमी पड -रही है। अभी पानी गिरने को दो महीने से कम नहीं हैं। हम लोग मसूरी क्यों न चलें। विध्ये०-मेरा तो कहीं जाने को जी नहीं चाहता। कल से दुर्गापाठ जरूर कराना । मुझे अब इस कमरे में नींद न पायेगी। पडित-ग्रथों में तो यही देखा है कि मरने के बाद केवल सूक्ष्म शरीर रह जाता है । फिर समझ में नहीं आता, यह स्वरूप क्योंकर दिखाई दे रहा है । कुछ नहीं, यह मेरी कल्पना का दोष है । कभी-कभी ऐसे भ्रम हो जाते सच कहता हूँ बिन्नी, अगर तुमने मुझपर यह दया न की होती, तो मैं कहीं का न रहता । शायद इस वक्त मैं बदरीनाथ के पहाड़ों पर सिर टक. राता होता; या कौन जाने विष खाकर प्राणांत कर चुका होता ! विध्ये०-मसूरी मे किसी होटल में ठहरना पड़ेगा ? 'डित-नहीं, मकान भी मिलते हैं । मै अपने एक मित्र को लिखे देता हूँ, वह कोई मकान ठीक कर रखेगे । वहाँ... बात पूरी न होने पाई थी कि न-जाने कहाँ से-जैसे आकाशवाणी हो-आवाज़-आई-बिन्नी तुम्हारी पुत्री है ! चौवेजी ने दोनो कान वद कर 'लये । भय से थरथर कापते हुए बोले- 'बिन्नी, यहाँ से चलो। न-जाने कहाँ से आवाजे पा रही हैं । "बिन्नी तुम्हारी पुत्री है !"- यह ध्वनि सहस्त्रो कानो से पडितजी को -सुनाई पड़ने लगी, मानो उस कमरे की एक एक वस्तु से यही सदा आ रही है। बिन्नी ने रोकर पूछा--कैसी आवाज़ थी ? पडित---क्या बताऊँ, कहते लजा आती है। बिन्नी--ज़रूर बहनजी की आत्मा है। बहन, मुझपर दया करो, स्वथा निर्दोष हूँ। पडित--फिर वही आवाज़ पा रही है। हाय ईश्वर ! कहाँ जाऊँ ? मेरे तो रोम-रोम मे वे ही शब्द गूंज रहे हैं । बिन्नी, मैंने बुरा किया । मगला