पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१८३

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१.८४ मानसरोवर v बूढापे में पत्नी का मरना बरसात में घर का गिरना है । फिर उसके बनने की अाशा नहीं होती। मगला की मृत्यु से पडितजी का जीवन अनियमित और विशृखल-सा हो गया। लोगों से मिलना जुलना छूट गया । कई-कई दिन कचहरी ही न जाते । जाते भी, तो बड़े अाग्रह से ! भोजन से अरुचि हो गई । विन्ध्येश्वरी उनकी दशा देख-देखकर दिल में कुढती और यथासाध्य उनका दिल बहलाने की चेष्टा किया करती थी। वह उन्हें पुराणों की कथाएँ पढकर सुनाती, उनके लिए तरह-तरह की भोजन-सामग्री पकाती और उन्हें श्राग्रह अनुरोध के साथ खिलाती थी । जब तक वह न खा लेते, आप कुछ न खाती थी। गरमी के दिन थे ही । रात को बड़ी देर तक उनके पैताने बैठी पखा झला करती, और जब तक वह न सो जाते, तब तक आप भी सोने न जाती। वह ज़रा भी सिर दर्द की शिकायत करते, तो तुरत उनके सिर में तेल डालती । यहाँ तक कि रात को जब उन्हें प्यास लगती, तब खुद दौडकर आती, और उन्हें पानी पिलाती । धीरे धीरे चौवेजी के हृदय में मगला केवल एक सुख की स्मृति रह गई। एक दिन चौबेजी ने बिन्नी को मगला के सब गहने दे दिये । मगला का यह अतिम आदेश था । बिन्नी फूली न समाई। उसने उस दिन खूब बनाव सिंगार किया, जब संध्या के समय पडितजी कचहरी से आये, तो वह गहनों से लदी हुई उनके सामने कुछ लजाती और मुसकराती हुई आकर खड़ी हो गई। पडितजी ने सतृष्ण नेत्रों से देखा ! विंध्येश्वरी के प्रति अब उनके मन मे एक नया भाव अकुरित हो रहा था। मंगला जब तक जीवित थी, वह उनके पिता-पुत्रीभाव को सजग और पुष्ट करती रहती थी। अब मगला न थी। अतएव वह भाव दिन-दिन शिथिल होता जाता था। मंगला के सामने बिन्नी एक बालिका थी। मगला की अनुपस्थिति में वह एक रूपवती युवती थी। लेकिन सरल-हृदय बिन्नी को इसकी रत्ती भर भी खबर न थी कि भैया के भावों में क्या परिवर्तन हो रहा है। उसके लिए वह वही पिता के तुल्य