पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१४३

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१४४ मानसरोवर नहीं सहूर था, तो साफ कह देते, मुझसे यह काम न होगा। मैं यह थोड़े ही कहती थी, कि आग मे फोद पड़ो। उसे देखते ही थानेदार ने धौस जमाई-यही तो है भोदुआ की औरत, इसे भी पकड़ लो। बंटी ने हेकड़ी जताई.-हा-हाँ पकड़ लो। यहां किसी से नहीं डरते। जब कोई काम ही नहीं करते, तो डरे क्यों। अफसर और मातहत सभी की अनुरक्त आँखे बंटी की अोर उठने लगीं। भोदू की तरफ से लोगों के दिल कुछ नर्म हो गये। उसे धूप से छाँह मे बैठा दिया गया। उसके दोनों दाथ पीछे बँधे हुए थे और धूल धूसरित काली देह पर भी जूतो और कोड़ो के रक्तमय मार साफ नजर आ रहे थे। उसने एक बार बंटी की ओर देखा, मानो कह रहा था--- --देखना कहीं इन लोगों के धोखे मे न आ जाना। थानेदार ने डोट बताई ~जरा इसकी दीदा दिलेरी देखो, जैमे देवी ही तो है ; मगर इस फेर में न रहना । यहाँ तुम लोगों की नस-नस पहचानता हूँ। इतने कोड़े लगवाऊँगा कि चमड़ी उड जायगी। नहीं सीधे से कबूल दो। सारा माल लौटा दो। इसी में खैरियत है। भोदू ने बैठे-बैठे कहा-क्या कबूल दे। जो देश को लूटते हैं, उनसे तो कोई नहीं बोलता, जो विचारे अपनो गाढी कमाई की रोटी खाते हैं, उनका गला काटने को पुलीस भी तैयार रहती है । हमारे पास किसी की नज़र-भेट देने के लिए पैसे नहीं हैं । थानेदार ने कठोर स्वर से कहा-हा-हाँ, जो कुछ कोर कसर रह गई हो, वह पूरी कर दे । किरकिरी न होने पाये। मगर इन बैठकबाजियों से बच नहीं सकते। अगर एकबाल न किया, तो तीन साल को जानोगे। मेरा क्या बिगड़ता है । अरे छोटेसिंह, ज़रा लाल मिर्च की धूनी तो दो इसे । कोठरी बद करके पसेरी भर मिरचे सुलगा दो । अभी माल बरामद हुआ जाता है। भोंदू ने उसी ढिठाई से कहा-दारोगाजी, बोटी-बोटी काट डालो ; लेकिन कुछ हाथ न लगेगा । तुमने मुझे रात भर पिटवाया है, मेरी एक-एक हड्डी चूर-चूर हो गई है । कोई दूसरा होता, तो अब तक सिधार गया होता। क्या, तुम समझते हो, अ.दमी को रुपये, पैसे जान से भी प्यारे होते हैं ? जान , ,