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मानसरोवर
अपनी दशा, काल, स्थान, सब भूल गई। जख्मी सिपाही अपनी जीत का
समाचार पाकर अपना दर्द, अपनी पीड़ा भूल जाता है। क्षण-भर के लिए
मौत भी हेय हो जाती है। श्रद्धा का भी यही हाल हुआ। वह भी अपना
जीवन उस प्रम की उस निठुर वेदी पर उत्सर्ग करने के लिए तैयार हो गई,
जिस पर, लैला और मजनूॅ, शीरी और फरहाद -- एक नहीं, हज़ारो ने अपनी
बलि चढ़ा दी।
उसने चुंबन का उत्तर देते हुए कहा -- प्यारे, मैं तुम्हारी हूॅ, और सदा तुम्हारी ही रहूॅगी।
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