आधार को अपना समो, पालो-पोसो, बड़ा हो जायगा तो सगाई कर दंगो। और तो आना कोई बस नहीं। यह कहकर उसने अपने ससे छोटे लड़के वासुदेव से पूछा-क्यों रे । भौमाई से सगाई करेगा? वासुदेव की उन पांच साल से अधिक न थी। अबको उसका ब्याह होनेवाला था। बातचीत हो चुकी थी। बोला- तब तो दूसरे के घर न जायगी न ? मां-नहीं, जब तेरे साथ ब्याह हो जायगा तो क्यों जायगी? वासुदेव-तब मैं करूँगा। माँ-अच्छा, उससे पूछ तुमसे ब्याह भरेगी ? वासुदेव अनूपा की गोद में जा बैठा और शरमाता हुआ बोला- हमसे व्याह करेगी। यह कहकर वह इसने लगा , लेकिन अनूपा को आंखें डबडबा गई, वासुदेव को छाती से लगाती हुई गोलो --अम्मा, दिल से फहती हो ? सास-सगवान् जानते हैं। अनूपा--तो आज से यह मेरे हो गये ? खास-ही, सारा गाँव देख रहा है। अनूपा-तो भैया से कडा भेजो, घर बायें, मैं उनके साथ न जाऊँगी। ( ५ ) अनूपा को जीवन के लिए किसी आधार को जरत थी। वह आधार मिल गया ; सेवा मनुष्य को स्वाभाविक वृत्ति है। सेवा हो उसके जोवन का आधार है। अनूपा ने वासुदेव को पालना-पोसना शुरू किया। उसे उठन और तेल लगातो, दूध रोटी गल-मलकर खिलाती। आप तालाब नहाने जातो तो उसे भो नहलातो । खेत में जाती तो उसे भी साथ ले जाती। थोडे ही दिनों में वह उससे इतना हिल- मिल गया कि एक क्षण के लिए भी उसे न छोड़ना । मां को भूल गया। कुछ खाने को जी चाहता तो अनूपा से मांगता, खेल में मार खातो तो रोता हुआ अनूगा के पास आता । अनूपा ही उसे सुलातो, अनूना हो जगाती, घोमार होता तो अनूगा हो गोद में लेकर बदलू वैद्य के घर जाती, वही दवायें पिलाती। .
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