आधार ८३ अपने-अपने घात में थे। सौड़ ने बहुत चाहा कि तेज दौड़कर आगे निकल जाऊँ और वहां से पीछे को फिरूँ, पर मथुरा ने उसे मुड़ने का मौका न दिया। उसको जान इस वक्त सुई को नोक पर थो, एक हाथ भी चूछा और प्राण गये, परा पैर फिसला और फिर उठना नसीब न होगा। आखिर मनुष्य ने पशु पर विजय पाई और सांड़ को नदी में घुसने के सिवा और कोई उपाय न सूझा । मथुरा भी उसके पीछे नदी में पैठ गया और इतने डडे लगाये कि उसकी लाठी टूट गई। ( ३ ) अब मथुरा को जोरों को प्यास लगी। उसने नदी में मुंह लगा दिया और इस तरह हौंक-हौंककर पानी पीने लगा मानों सारी नदी पो जायगा । उसे आने जीवन में कभी पानी इतना अच्छा न लगा था और न कभी उसने इतना पानी पिया था। मालूम नहीं, पांच सेर पो गया या दस सेर, लेकिन पानो गरम था, प्यास न वुझो ; जरा देर में फिर नदी में मुंह लगा दिया और इतना पानी पिया कि पेट में साँस लेने की भी जगह न रही। तब गीली धोतो कधे पर डालकर घर को ओर चला। लेकिन दस ही पांच पग चला होगा कि पेट में मोठा-मोठा दर्द होने लगा। उसने सोचा, दौड़कर पानी पीने से ऐसा दर्द अकसर हो जाता है, जरा देर में दूर हो जायगा । लेकिन दर्द बढ़ने लगा और मथुरा का आगे जाना कठिन हो गया। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया और दर्द से बेचैन होकर जमीन पर लोटने लगा। कभी पेट को दबाता, कभी खड़ा हो जाता, कभी बैठ जाता, पर दर्द बढ़ता हो जाता था । अन्त को उसने ज़ोर-ज़ोर से कराहना और रोना शुरू किया, पर वहाँ कौन बैठा था जो उसको खबर लेता। दूर तक कोई गाँव नहीं, न आदम', न आदमजाद, वेवारा दोपहरी के सन्नाटे में तहर तड़पकर मर गया। हम कड़े से कहा घाव सह साते हैं, लेकिन जरा- सा भी व्यतिकम नहीं सह सकते । वही देव का-सा जवान जो कोशों तक सांड को भगाता चला आया था, तत्त्वों के विरोध का एक वार भी न सह सका । कौन जानता था कि यह दौड़ उसके लिए मौत की दौड़ होगी । कौन जानता था कि मौत हो साड़ का रूप धरकर उसे यो नचा रही है ? कौन जानता था कि वह जल जिपके बिना उसके प्राण ओठों पर आ रहे थे, उसके लिए विष का काम करेगा? सध्या समय उसके घरवाले उसे हूँढ़ते हुए आये। देखा तो वह अनन्त विश्राम में मग्न था। 2
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