विश्वास
उन दिनों मिस जोशी बम्बई सभ्य समाज की राधिका थी। थी तो वह एक छोटो-सौ कन्या-पाठशाला की अध्यापिका, पर उसका ठाट-बाट, मान-सम्मान बड़ी-बड़ो धन-रानियों को भी लज्जित करता था। वह एक बड़े महल में रहती थी जो किसी जमाने में सितारा के महाराना का निवास स्थान था । वहाँ सारे दिन नगर के रईसों, राजों, राजों-कर्मचारियों का तांता लगा रहता था। वह पारे प्रान्त के धन और छोर्ति के उपासकों की देवो थी। अगर किसी को खिताप का खन्न था तो वह मिस जोशी की खुशामद करता था; किसो को अपने या अपने सम्बन्धो के लिए कोई अच्छा ओहदा दिलाने की धुन थी तो वह मिस जोशो को आराधना करता था। सरकारी इमारतों के ठोके, नमक, शराब, अफीम आदि सरकारी चीजों के ठोके, लोहे लड़ी, छल-पुरजे आदि के ठीके सब मिस नोशो हो के हाथों में थे। लो कुछ करती थी, पही अरती थी, जो कुछ होता था, उसो के हाथों होता था। जिस वक्त वह अपनी अरवी घोडों को फिटन पर सैर करने निकलती तो रईसों की सवारियां आप-हो-आप रास्ते से हट जाती थी, बड़े-बड़े दृशानदार खड़े हो-होकर सलाम करने लगते थे। वह रूपरती थी, लेकिन नगर में उससे पढ़कर रूपवतो रमणियां भी था , वह सुश- क्षिता थी, वाक्यचतुर थो, गाने में निपुण, हँसती तो अनोखी छवि से, वोलती तो निराली छटा से, तारती तो बाँकी चितवन से । लेकिन इन गुणों में उसका एकाधिपत्य न था। उसकी प्रतिष्ठा, शक्ति और कीर्ति का कुछ और ही रहस्य था । सारा नगर ही नहीं, सारे प्रान्त का बच्चा बच्चा जानता था कि बम्बई के गवर्नर मिस्टर जौहरी मिस जोशी के बिना दामों के गुलाम हैं। मिस जोशी को आँखों का इशारा उनके लिए है। वह थिएटरों में, दावतों में, जलसों में मिस जोशो के साथ साये की भांति रहते हैं और कभी-कभी उनकी मोटर रात के सन्नाटे में मिस नौशी के मझान से निकलती हुई लोगों को दिखाई देती है। इस प्रेम में वासना की मात्रा अधिक है या भक्ति की, यह कोई नहीं जानता। लेकिन मिस्टर जौहरी विवाहित हैं और मिस जोशो विधवा, इसलिए जो लोग उनके प्रेम को कलुषित कहते हैं वे उन पर कोई अत्याचर नहीं करते।