पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/४२

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उद्धार ४१ के दिल का हाल मैं खूब जानता हूँ । सोचता होगा, अभी सैर-सपाटे कर रहा हूँ। विवाह हो जायगा तो यह गुलछरें कैसे उड़ेंगे। स्त्रो-तो शुभ मुहूर्त देखकर लग्न भेजवाने को तैयारो करो। ( ३ ) हजारीलाल बड़े धर्म संदेह में था। उसके पैरों में जबरदस्ती विवाह को बेही डाली जा रही थी और वह कुछ न कर सकता था। उसने ससुर को अपना कच्चा चिट्ठा कह सुनाया, मगर किसी ने उसको वातों पर विश्वास न किया। मां-बाप से अपनी बीमारी का हाल कहने का उसे साहस न होता था, न जाने उनके दिल पर क्या गुपरे, न-जाने क्या कर बैठे । कभी सोचता, किसी डाक्टर को शहादत लेकर ससुर के पास भेज दूं, मगर फिर ध्यान आता, यदि उन लोगों को उस पर भी विश्वास न आया तो ? आजकल डाक्टरों से सनद ले लेना कौन-सा मुश्किल काम है। सोचेंगे, किसी डाक्टर को कुछ दे-दिलाकर लिखा लिया होगा। शादी के लिए तो इतना भाग्रह हो रहा था, उधर डाक्टरों ने स्पष्ट कह दिया था कि अगर तुमने शादी की तो तुम्हारा जीवन-सूत्र और भो निर्मल हो जायगा। महीनों भी जगह दिनों में वारा-न्यारा हो जाने की सम्भावना है। लग्न भा चुका था। विवाह की तैयारियां हो रही थी, मेहमान आते-जाते थे और हजारीलाल घर से भागा-भागा फिरता था । कहाँ चला जाऊँ । विवाह की कल्पना हो से उसके प्राण सूखे जाते थे। आह उस भबला की क्या गति होगो ? जब उसे यह बात मालूम होगी तो वह मुझे अपने मन में क्ष्या कहेगी ? कौन इस पाप का प्रायश्चित्त करेगा ? नहीं, यह उस अपला पर घोर अत्याचार है। मैं उस पर यह अत्याचार न करूँगा, उसे वैधव्य को आग में न जलाऊँगा। मेरो जिन्दगी हो क्या, आज न मरा, कल माँगा, छल नहीं तो परसों, तो क्यों न आज हो मर जाऊँ ? आज ही जीवन का और उसके साथ सारी चिन्ताओं का, सारो विपत्तियों का, अन्त कर दूं। पिताजी रोयेंगे, अम्माँ प्राण त्याग देंगी, लेकिन एक बालिका का जोवन तो सफल हो जायेगा, मेरे बाद कोई अभागा अनाथ तो न रोयेगा। क्यों न चलकर पिताजी से कह दूँ? वह एक-दो दिन दुखी रहेंगे, अम्माँजो दो-एक रोज़ शोक से निराहार रह जायेंगी, कोई चिन्ता नहीं, आर माता-पिता के इतने कष्ट से एक युवती को प्राण-रक्षा हो जाय तो क्या छोटी बात है। a