मानसरोवर करता हूँ कि आप इसे गोपनीय समझिएगा और किसी दशा में भी उन लोगों के कानों में इसकी भनक न पड़ने दोजिएगा। जो होना है वह तो होगा ही, पहले हो से क्यों उन्हें शोक में डुबाऊँ। मुझे ५-६ महीने से यह अनुभव हो रहा है कि मैं क्षय-रोग से प्रसित हूँ। उसके सभी लक्षण प्रकट होते जाते हैं। डाक्टरों की भी यही राय है। यहां सबसे अनुभवी जो दो डाक्टर हैं उन दोनों हो से मैंने अपनी आरोग्य-परीक्षा कराई और दोनों ही ने स्पष्ट कहा कि तुम्हें सिल है। अगर माता- पिता से यह बात कह दूं तो वह रो-रोकर मर जायेंगे। जब यह निश्चय है कि मैं ससार में थोड़े हो दिनों का मेहमान हूँ तो मेरे लिए विवाह को कल्पना करना भी पार है। सभव है कि मैं विशेष प्रयत्न करने से साल-दो-पाल जीवित रहूँ, पर वह दशा और भी भयकर होगी; क्योंकि अगर कोई संतान हुई तो वह भी मेरे संस्कार से अकाल मृत्यु पायेगी और कदाचित् स्त्री को भी इसी रोग-राक्षस का भक्षण मनना पड़े। मेरे अविवाहित रहने से जो कुछ बीतेगी, मुम ही पर बीतेगो । विवाहित हो जाने से. मेरे साथ और भी कई जीवों का नाश हो जायगा । इसलिए आपसे मेरो विनीत प्रार्थना है कि मुझे इस बन्धन में डालने के लिए आग्रह न कीजिए, अन्यथा आपको पछताना पड़ेगा। सेवक हजारीलाल।' पत्र पढ़कर गुलजारीलाल ने स्त्री को ओर देखा और बोले- इस पत्र के विषय में तुम्हारा क्या विचार है। स्त्री-मुझे तो ऐसा मालूम होता है कि उसने बहाना रवा है । गुलजारीलाल-स-बस ठीक यही मेरा भी विचार है। उसने समझा है कि बीमारी का बहाना कर दूंगा तो लोग आप हो हर जायेंगे। असल में बीमारी कुछ नहीं। मैंने तो देखा ही था, चेहरा चमक रहा था। बीमार का मुंह छिपा नहीं रहता । स्त्री-राम का नाम लेके विवाह करो, कोई किसी का भाग्य थोड़े ही पढ़े वैठा है । गुलजारीलाल-यही तो मैं भी सोच रहा हूँ। स्त्री -न हो किसी गफ्टर से लड़के को दिखाओ। कहीं पचमुच यह बीमारी हो तो बेचारी अम्बा कहीं को न रहे। गुलजारीलाल-तुम भी पागल हुई हो क्या, यह सम होले-हवाले हैं। इन छो।
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