विनाद । -- पाँच हो । इतना भी नहीं समझे कि यह सादिलंगी थी। ऐसे बड़े पसरत भो तो नहीं हो।' पक्रधर-दिल्लगो तुम्हारे लिए थी, मेरो तो मौत हो गई। चिड़िया जान से गई, सड़कों का खेल हुआ । अब चुपके से मेरे पांच सौ रुपये कोख दीजिए, नहीं वो गरदन हो तोड़ दूंगा। नईम-रुपयों के बदले जो खिदमत चाहे, ले लो । हो, तुम्हारी हजामत बना हैं, जूते साफ कर दें, सिर सहला दें। बस, खाना देते जाना। असम ले मो, . जो जिन्दगी-भर. कहीं जाऊँ, या तरको के लिए कहूँ। मां-बाप के सिर से तो बोम टल वायगा। चकवर-मत जले पर नमक छिड़को जो आपके आप गये, मुझे भी ले हवे । तुम्हारी तो अंगरेजो मच्छो है, लोट-पोटकर निकल जाओगे। मैं तो पास मो न हूँगा। बदनाम हुआ, वह अलग । पांच सौ की चपत भी पड़ी। वह दिल्लगे है कि गला काटना ? खैर धमझेगा, और मैं चाहे न समझे, पर वर कर समगे। नईम- गलती हुई भाई, मुझे अब सुद इसका अफसोस है। गिरिधर-खैर, रोने-धोने का अभी बहुत मौका है। भव यह बताइए कि सूसी ने प्रिसिपल से कह दिया, तो क्या नतोना होगा। तोनों भादमो निकाल दिये जायगे। नौकरी से भी हाथ धोना पड़ेगा। फिर ! बघर-मैं तो प्रिंसिपल से तुम लोगों की पारी कलई खोजएगा? नईम--यो यार, दोस्ती के यहो माने हैं? चक्रधर-जी हां, आप जैसे दोस्तों को यहो सका है उघर सो रातमर मुशायरे का बाजार गरम रहा, भौर पर यह त्रिमूर्ति ऐठो प्राप-रक्षा के उपाय सोच रही थी। प्रिंसिपल के कानों तक बात पहुंची और माफत माहे । अँगरेजवाली बात है, न जाने क्या कर बैठे। आखिर बहुत वाद-विवाद के पश्चात् यह निश्चित हुआ कि नईम और गिरिधर प्रातःकाल मिस सूमो के बंगले पर बायें, उससे क्षमा याचना करें और इस अपमान के लिए वह को प्रायश्चित्त कहे, असे स्वीकार करें। चक्रधर-मैं एक कोडौ न दूंगा। नईम -न देना भरें। हमारो जान तो हैन ।
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