मानसरोवर , पक्षमा जनाध, यह तो उनको तालोस और मजाक पर मुनहबर है। अगर का नये फैशन को लेडो हैं, तो कोई नेश-कौमत, सुबुलबाहदार चोज, या ऐसी हो कई चोजें भेजिए । मसलन् रूमाल, रिस्टवाच, लवेदर को शोशो, फैंसी' को, आहेना, नाकेट ब्रुच वगैरह । और, खुदानस्वास्ना अगर गवारिन हैं, तो किसी दुसरे आदमी से पूछिए । मुछे गवारिनों के मजाक का इल्म नहीं। चक्रधर-जनार, अगरेजी पढ़ो हुई हैं। बड़े ऊँचे खानदान को है। नईम-तो फिर मेरी सलाह पर अमल कीजिए। संध्या-समय मित्रगण चक्रपर के साथ बाजार गये और ढेर-को-ढेर चीजें बटोर लाये।। सब-की-सय ऊंचे दरजे पी। कोई ७५) खर्च हुए। मगर पण्डितजी ने उफ तक न की । हँसते हुए रुपये निकाले । लौटते वक नईम ने कहा-अफसोस, हमें ऐसी खुशमज़ाक बौनी न गिलो ! गिरिधर - जहर खा लो, जहर । बईम-भई, दोस्ती के माने तो यही हैं कि एक बार हमें भी उनकी जियारत हो । क्यों पण्डितजी, आप इसमें कोई हरज समभावे है ? चक्रधर-माता-पिता न होते, तो कोई हरन न था। अभी तो मैं उन्हों का मुहताज हूँ। इतनी स्वतन्त्रता क्योकर बरतूं ? नईम-खैर, खुदा उन्हें जल्द दुनिया से नजात । रातोरात पंकर बना और प्रातःकाल पण्डितजो उदे ले जाकर लाइब्रेरी में रख आये । लाइब्रेरी सवेरे ही खुल जातो थी। छोई अड्चन न हुहै। उन्होंने इधर मुँह फेग, उधर यारों ने माल उड़ाया, बार चरत हुए। नईम के कमरे में चन्दे के हिसाब से हिस्सा-बाँट हुआ । किसी ने धो पाई, किसी ने हमाल, किसी ने कुछ । एक-एक रुपये के पहले पांच पांच रुपये झाध लगे। ( ३ ) प्रेमी जन का धैर्य अपार होता है। निराशा-पर-निराशा होती है, पर धैर्य हाथ से नहीं छूटता । पण्डितजो बेचारे विपुल धन व्यय करने के पश्चात् भी प्रेमिका से सभा षण का सौभाग्य न प्राप्त कर सके। प्रेमिका भी विचित्र भो, जो पत्रों में मिसरी को पली घोल देती, मगर प्रायक्ष में दृष्टिपात भी न करती थी। बेचारे बहुत चाहते थे कि स्वयं हो अग्रसर हों, पर हिम्मत न पत्तो थी। विकट समस्या थो। किंतु इससे 2 1
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/३१५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।