सत्याग्रह २७ 3 1 राजा- कुछ तला सकते हैं कि यह कौन-सा अनुष्ठान होगा ? मोटेराम-अनशन व्रत के साथ मन्त्रों का जप होगा। सारे शहर में हलचलन मचा दूं तो मोटेराम नाम नहीं । राजा-तो फिर कप से? मोटेराम-आज ही हो सकता है। हाँ, पहले देवताओं के आवाहन के निमित्त थोड़े से रुपये दिला दीजिए। रुपये की कमी हो क्या थी। पण्डितजी को हाये मिल गये और वह खुश, खुश घर आये। धर्म-पत्नी से सारा समाचार कहा। उसने चिन्तित होकर कहा- तुमने नाहक यह रोग अपने सिर लिया ! भूख न बरसात हुई तो ? सारे शहर में भद्द हो जायगी, लोग हँसी उड़ावेंगे। रुपये लौटा दो। मोटेराम ने आश्वासन देते हुए कहा-भूख केमे न बरदाश्त होगी। मैं ऐसा. मूर्ख थोड़े ही हूँ कि यों हो जा लूंगा। पहले मेरे भोजन का प्रान्ध करो। भमू- तियां, लड्डू, रसगुल्ले मँगाओ। पेट भर भोजन दार । फिर माध सेर मलाई खाऊँगा, उसके ऊपर आध सेर बादाम को तह जमाऊँगा। बची-खुची कसर मलाई- वाले दही से पूरी कर दंगा। फिर देखू गा, भूख क्योकर पास फटकतो है। तीन दिन तह तो सांस हो न लो जायगो, भूख को कौन चलावे । इतने में तो सारे शहर में खलबली मच जायगी। भाग्य-सूर्य उदय हुआ है, इस समय आगा पोछा करने से पछताना पड़ेगा। बाकार न बन्द हुआ, तो समझ लो मालामाल हो जाऊँगा। नहीं तो यहां गांठ से क्या जाता है | सौ रुपये तो हाथ लग हो गये । इधर तो भोजन का प्रपन्च हुआ, उधर पण्डित मोटेराम ने डौंडी पिटवा दो कि उन्ध्या समय टाउनहाल के मैदान में पण्डित मोटेराम देश की राजनीनिक समस्या पर व्याख्यान देंगे, लोग अवश्य आ । पण्डितजी सदैव राजनीतिक विषयों से भला रहते थे। आज वह इस विषय पर कुछ बोलेंगे, सुनना चाहिए। लोगों को उत्सुकता हुई। पण्डितजी का शहर में बड़ा मान था। नियत समय पर कई हजार आदमियों की भौर लग गई ; पण्डितो घर से अच्छी तरह तैयार होकर पहुंचे। पेट इतना भा हुआ था कि चकना कठिन था। ज्योंही यह वहां पहुंचे, दर्शकों ने खड़े होकर इन्हें साटयर दश्वत् प्रणाम किया। मोटेराम बोले-नगरवासियो, व्यापारियो, सेठो और महाजनो! मैंने सुना है,
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