पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२७५

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मानसरोवर कानों में गूंज हो रही थी कि शाहजादा कटे हुए पेरू की तरह भूमि पर गिर पड़ा। साथ ही वह रत्न-जटित मुठ भी नादिरशाह के पैरों के पास आ गिरा। नादिरशाह ने उन्मत्त की भांति हाथ उठाकर कहा-क्रातिलों को पकड़ो ! साथ हो शोक से विह्वल होकर वह शाहजादे के प्राण-हीन शरीर पर गिर पड़ा। जोवन को सारी अभिलाषाओं का अन्त हो गया। लोग कातिलों की तरफ दौड़े। फिर धार्य-धार्य की आवाज़ आई, और दोनों क्रातिल गिर पड़े। उन्होंने आत्महत्या कर ली। वे दोनों विद्रोही पक्ष के नेता थे। हाय रे मनुष्य के मनोरथ, तेरो भित्ति कितनी अस्थिर है ! माल पर लो दोवार तो वर्षा में गिरती है, पर तेरी दीवार विना पानो-बूंदी के ढह जाती है। आंधी में दीपक का कुछ भरोसा किया जा सकता है । पर तेरा नहाँ । तेरो अस्थिरता के आगे बालकों का पर्शदा अचल पर्वत है, वेश्या का प्रेम सती की प्रतिज्ञा की भांति अटल ! नादिरशाह को लोगों ने लाश पर से उठाया। उसका करुण क्रन्दन हृदयों को हिलाये देता था। सभी को आँखों से आंसू बह रहे थे।' होनहार खितना प्रबल, कितना निष्ठुर, कितना निर्दय और कितना निर्मम है। नादिरशाह ने होरे को जमीन से उठा लिया। एक बार उसे विषाद-पूर्ण नेत्रों से देखा। फिर मुकुट को शाहसादे के सिर पर रख दिया, और वजोर से कहा-यह होरा इसी लाश के साथ दफन होगा। रात का समय था । तेहरान में मातम छाया हुआ था । कहाँ क्षेपक या अनि का प्रकाश न था। न किसी ने दिया जलाया, और न भोजन बनाया। अफ्रोमचियों की चिलमें भी भाज टंडो हो रही थी। मगर ऋनिस्तान में मशालें रोशन थी-शाहजादे को अन्तिम क्रिया हो रही थी। जब फ़ातिहा खतम हुआ, नादिरशाह ने अपने हाथों से मुकुट को लाश के साथ क्रब में रख दिया। राज और संगतराश हाजिर थे। उसी वक्त क्रन पर इंट-पत्थर और चूने का मजार बनने लगा। नादिर एक महोने तक एक क्षण के लिए भी वहाँ से न हटा । वहीं सोता था, वहीं राज्य का काम करता था। उसके दिल में यह बैठ गई थी कि मेरा अहित इसो होरे के कारण हुआ। यही मेरे र्घनाश और मचानक, वज्रणत का कारण है । 2