वज्रपात .. .. शेर ने दिल पर चोट किया। पत्थर में भी सूराख होते हैं ; पहाड़ों में भी हरि- याको होती है ; पाषाण-हृदयों में भो रस होता है। इस शेर ने पत्थर को पिघला दिया । नादिरशाह ने सेनापति को बुलाकर कत्ल-आम मद करने का हुक्म दिया। एक दम तलवारें म्यान में चली गई। क्रातिलों के उठे हुए हाथ उठे हो रह गये। जो सिपाही जहां था, वहीं बुत बन गया। शाम हो गई थी । नादिरशाह शाही बार में सैर कर रहा था। वार-पार वही शेर पढ़ता और झूमता था- कसे न माँद कि दीगर ब तेरो नाज कुशी; मगर कि जिंदा कुनी वल्करा व बाज कुशीः ( २ ) दिल्ली का खजाना लुट रहा है । शाही महल पर पहरा है, कोई अंदर से बाहर, था बाहर से अंदर आ-जा नहीं सकता। बेगमें भी अपने महलों से बाहर बाग में निकलने को हिम्मत नहीं कर सकती । महज़ खाने पर ही आफ़त नहीं भाई हुई है, सोने-चांदी के बरतनों, वेश क्रोमत तसवोरों और भाराइश के अन्य सामग्रियों पर भी हाथ साफ किया जा रहा है । नादिरशाह तख्त र बैठा हुआ होरे और जवा- रात के ढेरॉ को गौर से देख रहा है। पर वह चीज नजर नहीं आती, जिसके लिए मुद्दत से उसका चित्त लालायित हो रहा था। उसने मुगल साम नाम के हीरे को प्रशसा, उसकी करामातों को चरथा सुनी थो-उसको धारण करनेवाला मनुष्य दोर्घ- जोवी होता है, कई रोग उसके निस्ट नहीं आता, उस रन में पुत्रदायिनी शक्ति है इत्यादि । दिल्ली पर माक्रमण करने के जहाँ और भनेक कारण थे, वहीं इस रत्न को प्राप्त करना भी एक कारण था। सोने-चांदी के ढेरों और बहुमूज्य रन्नों को चमक- दमक से उसकी आँखें भले ही चौंधिया जाय, पर हृदय उल्लशित न होता था। उसे तो मुगल आजम को धुन थो, और मुगल-आजम का वहाँ कहीं पता न था । वह क्रोध से उन्मत्त हो-होकर शाही मत्रियों की ओर देखता और अपने अनारों को मिकिया देता था पर अपना अभिप्राय खोलकर न कह सकता था। किसो की प्रमझ में न भाता था कि वह इतना आतुर क्यों हो रहा है। यह तो खुशो से फूले न समाने का सर है । अतुल सम्पत्ति सामने पड़ी हुई है, संख्या में इतनो सामर्थ्य नहीं कि उसकी गणना कर सके ! संसार का कोई भी महीपति इस विपुल धन का एक अंश
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