पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२५५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कोदो नहीं है । लेकिन मैंने चुटकियों में वसूल कर लिया ! भाप उठिए, खाने का इन्तजाम कीजिए। उमा-रुपये भला क्या दिये होंगे ? मुझे एतबार नहीं आता। नईम-आप सरल हैं, और वह एक ही कायो । उसे तो मैं हो खूप मानता हूँ। अपनी दरिद्रता के दुखड़े गा-गाकर आपको चश्मा दिया करता होगा। कैलास मुसहिराते हुए कमरे में आये, और बोले-अच्छा, अब निकलिए बाहर! यहाँ भी अपनी शैतानी से बाज नहीं भाये ? नईम- रुपयों को रसोद तो लिख दे । उमा-दया तुमने रुपये दे दिये ? कहाँ मिले ? कैस-फिर भी बतला दूंगा । उठिए हजरत ! उमा बताते क्यों नहीं, कहाँ मिले मिरज़ाजी से कौन परदा है ! कैलाध-नईम, तुम उमा के सामने मेरी तोहीन करना चाहते हो? नईम-तुमने सारी दुनिया के सामने मेरी तौहीन नहीं की ? कैलास---तुम्हारी तौहीन की, तो उसके लिए बीस हजार रुपये नहीं देने पड़े ! नईम-मैं भी उसी टकसाल के हाये दे दूंगा । उमा, मैं रुपये पा गया । इन देचारे का परदा ढका रहने हो । .