सर ७ बधा, उसका मूल्य इसरों से क्यो वसूल कः ? मेरा पत्र बन्द हो जाय, पकड़कर कैद किया जाऊँ, मेरा मकान कुर्क कर लिया जाय, बरतन भौड़े नीलाम हो जायें, यह सब मुझे मंजूर है । जो कुछ सिर पड़ेगी, भुगत लूंगा, पर किसी के सामने हाथ न फैलाऊँगा। सूर्योदय का समय था। पूर्व दिशा से प्रकाश की व्टा ऐसे दौड़ी चली आतो भो, जैसे आँख में आंसुओं की धारा । ठंडी हवा कलेजे पर यों लगती थी, जैसे किसी के फरुण अन्दन को ध्वनि । सामने का मैदान दुखी हृश्य की भांति ज्योति के वाणों से बिंध रहा था। घर में यह नि:स्तब्धता छाई थी, जो गृह स्वामी के गुप्त रोदन की सूचना देती है। न चालकों का शोर गुल था, और न माता को शान्ति प्रसारिणी शब्द- ताइना । जब दीपक बुझ रहा हो, घर में प्रकाश कहां से भावे ? यह आशा का प्रभाव नहीं, शोक का प्रभाव था ; क्योंकि आज ही कुम्भमन कैलास को सम्पत्ति को नीलाम करने के लिए आनेवाला था। उसने अंतर्वेद से विवल होएर कला-आह ! आज मेरे सार्वजनिक जोमन का अन्त हो जायगा। जिस भवन का निर्माण करने में अपने जीवन के २५ वर्ष लगा दिये, वह आज नष्ट भ्रष्ट हो जायगा। पत्र की गरदन पर छुरी फिर जायगी, मेरे पैरों में उपहास और अपमान की बेमियों पड़ जायगी, मुख में कालिमा लग जायगी, यह शांति-फुटीर उजड़ जायगा, यह शोकाकुल परिवार किसी मुरझाये हुए फूल को पंख- हियों की भांति बिखर बायगा। संसार में उसके लिए कहीं आश्रय नहीं है। जनता को स्मृति चिरस्थायी नहीं होती; अल्प काल में मेरी सेवाएँ विस्मृति के अंधकार में लीन हो जायेंगी। किसी को मेरी सुध भी न रहेगी, कोई मेरी विपत्ति पर मासू बहाने वाला भी न होगा। सहसा उसे याद आया कि आज के लिए अभी अप्रलेख लिखना है। आज अपने सुहृद पाठकों को सूचना है कि यह इस पत्र के जीवन का अन्तिम दिवस है, उसे फिर आपकी सेवा में पहुंचने का सौभाग्य न प्राप्त होगा। हमके भनेक भूलें हुई होगी, माज हम उनके लिए.भापसे क्षमा मांगते हैं। आपने हमारे प्रति जो सहवेदना और सहृदयता प्रकट की है, उसके लिए हम सदैव आपके कृतज्ञ रहेंगे। हमें किसी से कोई शिकायत नहीं है। हमें इस अकाल मृत्यु का दुःख नहीं है। क्योंकि यह सौभाग्य उन्ही को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य-पथ पर अविचल रहते हैं। . " 3
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२५१
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