मानसरोवर - रहा । अन्त को जाति ने व्यक्ति को परास्त कर दिया। उसने निश्चय किया कि मैं इस रहस्य का यथार्थ स्वरूप दिखा दंगा ; शासन के अनुत्तरदायित्व को जनता के सामने खोलकर रख दंगा ; शासन-विभाग के कर्मचारियों को स्वार्थ लोलुपत्ता का नमूना दिखा दूंगा ; दुनिया को दिखा दूंगा कि सरकार किनकी आँखों से देखती है, किनके कानों से सुनती है। उसकी अक्षमता, उपकी योग्यता और उसकी दुर्बलता को प्रमाणित करने का इससे बढ़कर और कौन-सा उदाहरण मिल सकता है ? नईम मेरा मित्र है, तो हो ; जाति के सामने वह कोई चीज नहीं है। उसकी हानि के भय से मैं राष्ट्रीय कर्तव्य से क्यों मुंह फेलं, अपनी आत्मा को क्यों दूषित स, अपनी स्वाधीनता को क्यों कलङ्कित करूँ ? आह, प्राणों प्रिय नईम ! मुझे क्षमा करना, आप तुम-जैसे मित्र-रत्न को मैं अपने कर्तव्य की वेदी पर पलि चढ़ाता हूँ। मगर तुम्हारो जगह अगर मेरा पुत्र होता,तो उसे भी इसी वर्तव्य की बलि वेदो पर भेंट कर देता ! दूसरे दिन कैलास ने इस घटना की मीमांसा शुरू की। जो कुछ उसने नईस्ट से सुना था, वह सब एक लेखमाला के रूप में प्रकाशित करने लगा। घर का मेदी लंका ढाहे । अन्य सम्पादकों को बहाँ अनुमान, लर्क और युक्ति के आधार पर अपना मत स्थिर करना पड़ता था, और इसलिए वे कितनी ही अनर्गल, अपवादपूर्ण बाते लिज डालते थे, वहाँ कैलास की टिप्पणियां प्रत्यक्ष प्रमाणों से युक्त होतो थीं। वह पते पते की बात कहता था, और उस निभीकता के साथ, जो दिव्य अनुभव का निर्देश करती भी। उसके लेखों में विस्तार कम, पर सार अधिक होता था। उसने नईम को भी न छोड़ा, उसकी स्वार्थ लिप्सा का खूब खाका उड़ाया। यहां तक कि वह धन की संख्या भी लिख दी, जो इस कुत्सित व्यापार पर परदा डालने के लिए उसे दी गई थी। सबसे मजे की बात यह थी कि उसने नईम से एक राष्ट्रीय गुप्तचर की मुलाकात का भी उल्लेख किया, जिसने नईम को, रुपये लेते हुए देखा था। अन्त में गवर्नमेण्ट को भी चैलेज दिया कि जो उसमें साहस हो, तो मेरे प्रमाणों को झूठा साबित कर दे। इतना ही नहीं, उसने वह वार्तालाप भी अक्षरशः प्रकाशित कर दिया, जो उसके और नईम के बीच हुआ था। रानी ' का नईम के पास आना, उसके पैरों पर गिरना, कुँअर साहब का नईम के पास नाना प्रकार के तोहफे लेकर आना, इन सभी उसगों ने उसके लेखों में एक जासूसी उपन्यास का मना पैदा कर दिया। .
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