डिक्री के रुपये . वाक्चतुर, निद्वंद्व, नईम और कैलास में इतनी शारीरिक, मानधिक, नैतिक और सामाजिक अभि- नता थी, जितनी दो प्राणियों में हो सकती है। नईम दीर्घकाय विशाल वृक्ष था, कैलास बाग का कोमल पौधा ; नईम को क्रिकेट और फुटबाल, सैर और शिकार का व्यसन था, केलास को पुस्तकावलोकन का ; नईम एक बिनोदशोल, हास्यप्रिय, विलासी युवक था, उसे कल की चिता कभी न सताती धो। विद्यालय उसके लिए कोड़ा का स्थान था, और कभी-कभो बैंच पर खड़े होने का। इसके प्रतिकूल फैलास एक एकांतप्रिय, आलसो, व्यायाम से कोसों भागनेवाला, आमोद-प्रमोद से दूर रहनेवाला, चिताशील, आदर्शवादो जीव था। वह भविष्य की कल्पनाभों से विकत रहता था। नईस एक सुसम्पन्न, उच्च पदाधिकारी पिता का एकमात्र पुत्र था। कैलास एक साधारण व्यवसायी के कई पुत्रों में से एक। इसे पुरतकों के लिए काफी धन न मिलता था, माप-जांचकर काम निकाला करता था। एक के लिए जीवन आनंद का स्वप्न था, और दूसरे के लिए विपत्तियों का बोझ। पर इतनी विषमताओं के होते हुए भी उन दोनों में पनिछ मैत्री और निस्वार्थ विशुद्ध प्रेम था। कैलास मर जाता, पर नईम का अनुप्रह-पान न बनता ; भौर नईम मर जाता, पर कैलास से बेअक्ष्मी न करता। नईम की खातिर से कैलास कभी-कभी स्वच्छ, निर्मल लिया करता । कैलास की खातिर से नईम भी कभी-कभो भविष्य के स्वप्न देख लिया करता था। नईम के लिए राज्यपद का द्वार खुला हुआ था, भविष्य कोई अपार सागर न था। कैलास को अपने हाथों से कुआं खोदकर पानी पीना थां, भविष्य एक भीषण ; सग्राम था, जिसके स्मरण-मात्र से उसका चित्त अशान्त हो उठता था। ( २ ). कालेज से, निकलने के बाद नईम को शासन-विभाग में एक उच्च पद प्राप्त हो गया, यद्यपि वह तीसरी श्रेणी में पास हुआ था। कैलास प्रथम श्रेणी में पास हुआ था; किंतु उसे बरसों एलियाँ रगड़ने, खाक छानने और कुएं झांकने पर भी कोई काम न मिला। यहां तक कि विवश होकर उसे अपनी कलम का आश्रय लेना पड़ा । वायु का सुख उठा
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