पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२२७

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मानधारापर - ताई गये कि नूरअली ने झांसा दिया। एक कोने में दबक रहे । जव कमरा नौकरों से खाली हो गया, तो साहब उनकी ओर बढ़े । लाला साहब के होश उड़ गये। तेजी से कमरे के बाहर निकले और सिर पर पैर रखकर बेतहाशा भागे। साहब उनके पीछे दौड़े। सेटजी की फिटन फाटक पर खड़ी थी। घोड़े ने धम-धम खटपट सुनो तो चौंका । कनौतियां खड़ी की और फिटन को लेकर भागा। विचित्र दृश्य था। आगे- आगे फिटन, उसके पीछे सेठ उजागरमल, उनके पीछे हंटरधारी मिस्टर क्रास ! तीनों षगटुट दौड़े चले जाते थे। सेठजी एक घार ठोकर खाकर गिरे, पर साहब के पहुँचते- पहुँचते संभल रठे। हाते के बाहर सड़क तक घुड़दौड़ रही। अंत में साहब रुक गये, मुंह में कालिख लगाये अब और आगे जाना हाल्य मन मालूम हुआ। यह विचार भी हुआ कि सेठजी को काफी सज़ा मिल चुकी । अपने नौकरों को खबर लेना भी जरूरी था। लौट गये। सेठ उजागरमल की जान में जान आई। वैठकर हॉफने लगे। घोड़ा भी ठिठक गया। घोचवान ने उतरकर उन्हें संभाला और गोद में उठाकर गाड़ी पर बैठा दिया। ( ३ ) लाला उजागरमल शहर के सहयोगी समाज के नेता थे। उन्हें अंगरेजों की भावी शुभकामनाओं पर पूर्ण विश्वास था। अंगरेजो राज्य को तालोमो, मालो और मुल्को तरको के राग गाते रहते थे। अपनी वक्तृताओं में असहयोगियों को खून फटकारा करते थे। गरेका में इधर उनका आदर-सम्मान विशेषरूप से होने लगा था, कई बड़े-बड़े ठेके, जो पहले अँगरेज़ ठेकेदारों ही को मिला करते थे, उन्हें दे दिये गये थे । सहयोग ने उनके मान और धन को खूब बढ़ाया था, अतएव मुँह से चाहे वह असहयोग की वितनी ही निन्दा करें, पर मन में उसकी उन्नति चाहते थे। उन्हें यकीन था कि असहयोग एक हवा है, अब तक चलतो रहे, उनमें अपने गीले कपड़े सुखा लें। वह असहयोगियों के कृत्यों का खूब बढ़ा-पढ़ाकर बयान किया करते थे और अधिकारियों को इन गढ़ी हुई बातों पर विश्वास करते देखकर दिल में उन पर खूब हंसते थे। ज्या ज्यों सम्मान बढ़ता था, उनका भात्माभिमान भी बढ़ता था। वह अब पहले की भांति भोरु न थे। गाड़ी पर बैठे और जरा सांस फूलना बन्द हुआ, तो इस घटना को विवेचना करने लगे। अवश्य नूर अली ने मुझे धोखा दिया, उसकी असहयोगियों से सांठ-गांठ मालूम होती है। लेकिन माना कि मेरा पिचकारी चलाना साहब को बुरा । । . -