२१४ मानसरोवर भंगी-बहाना मत कर, पैठ, कुछ गाकर सुना, मालूप तो हो कि तेरे गला भी है या नहीं, गला हो न होगा तो क्या कोई सिखायेगा। नथुवा मामूली बाजार के लड़कों की तरह कुछ न कुछ माना जानता हो था, रास्ता चलता तो कुछ न कुछ गाने लगता था। तुरन्त गाने लगा। उस्ताद ने सुना; जौहरी था, समझ गया, यह काँच का टुकड़ा नहीं । बोला--कहाँ रहता है ? नथुवा ने अपनी राम कहानी सुनाई, परिचय हो गया। उसे आश्रय मिल गया और विकास का वह अवसर मिल गया, जिसने उसे भूमि से भामाश पर पहुँचा दिया। + तीन साल उद गये, नथुवा के गाने की सारे शहर में धूम मच गई। और वह केवल एक गुणी नहीं, सर्वगुणी था; गाना, सहनाई वजाना, पखावज, सारगी तम्बूरा, सितार- सभी छलालों में दक्ष हो गया। उस्तादों को भी उसकी चमत्कारिक बुद्धि पर आश्चर्य होता था। ऐसा मालूम होता था कि उसने पहले की पढ़ो हुई विद्या दुहरा ली है। लोग दस-दस सालों तक सितार बजाना सीखते रहते है और नहीं आता, स्थुवा हो एक महीने में उसके तारों का ज्ञान हो गया। ऐसे खितने हो रन पड़े हुए हैं, जो किसी पारखी से भेंट न होने के कारण मिट्टी में मिल जाते हैं। संयोग से इन्हीं दिनों ग्वालियर में एक सगोत सम्मेलन हुआ। देश-देशान्तरों छे संगीत के आचार्य निमन्त्रित हुए। हस्ताद धूरे को भी मेवता मिला। नथुवा इन्हीं का शिष्य था। उस्ताद ग्वालियर चले तो नाथू को भी साथ लेते गये। एक सप्ताह तक ग्वालियर में पड़ी धूमधाम रही। नाथूराम ने वहां खूब नाम कमाया। उसे सोने का तरया इनाम मिला। ग्वालियर के संगीत-विद्यालय के अध्यक्ष ने उस्ताद धूरे से भाग्रह किया कि नाथूराम को संगीत विद्यालय में दाखिल करा दो। यहाँ संगत के साथ उसकी शिक्षा भी हो जायगी। घूरे को मानना पड़ा। नाथूराम्म भी राजी हो गया। नाथूराम ने पांच वर्षों में विद्यालय की सर्वोच्च उपाधि प्राप्त कर ली। इसके साथ-साथ भाषा, गणित और विज्ञान में उसकी बुद्धि ने अपनी प्रखरता का, परिचय दिया। अब वह समाज का भूषण था। कोई उससे न पूछता था, कौन जाति हो, उसका रहन-सहन, तौर तरीका अब गायकों का सा नहीं, शिक्षित समुदाय का-सा था। सपने सम्मान की रक्षा के लिए वह ऊँचे वर्णवालों का सा भाचरण रखने लगा।
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