. कई मनुष्यों ने कहा-हाँ, हाँ, हमे भी यही माका है। महाराज, इस शका का समाधान कीजिए। मोटेशम --और किसी को कोई शंका है ? हम बहुत प्रसन्न होकर उसका निवा- रण करेंगे। सजनो, आप पूछते हैं कि उत्तम पदार्थों का भोजन करना और कराना क्योंकर सत्यभाषण से अधिक सुखदायो है। मेरा उत्तर है कि पहला रूप प्रत्यक्ष है और पूसा अप्रत्यक्ष । उदाहरणत. कल्पना कीजिए कि मैंने कोई अपराध किया। -यदि हाकिम मुझे बुलाकर नम्रतापूर्वक समझाये कि पण्डितजी, आपने यह अच्छा काम नहीं किया, आपको ऐसा उचित नहीं था ; तो उनका यह दण्ड मुझे सुमार्ग पर लाने में सफल न होगा। सज्जनो, मैं ऋषि नहीं हूँ, मैं दोन हीन माया-जाल में फंडा हुआ प्राणी हूँ। मुम्स पर इस क्ष्ण्ड का कोई प्रभाव न होगा। मैं झाकिम के सामने से हटते ही फिर उसी कुमार्ग पर चलने लगूंगा। मेरी बात समझ में आती है ? कोई उसे काटता है ? श्रोतागण-महाराज | आप विद्यासागर हो, आप पण्डिों के भूषण हो। आप को धन्य है। मोटेराम--- अच्छा, अब उसी उदाहरण पर फिर विचार करो। हाकिम ने बुला- कर तत्क्षण कारागार में डाल दिया और वहाँ मुझे नाना प्रकार के कष्ट दिये गये। अब जब मैं छुटूंगा, तो बरसों तक यातनाओं को याद करता रहूँगा और सम्भवतः कुमार्ग को त्याग दूंगा। आप पूछेगे, ऐसा क्यों है ? दण्ड दोनों ही हैं, तो क्यों एक का प्रभाव पड़ता है और दूसरे का नहीं। इसका कारण यहो है कि एक का रूप प्रत्यक्ष है और दूसरे मा गुप्त । समछे माप लोग ? श्रोतागण-धन्य हो कृपानिधान ! आपको ईश्वर ने बड़ी बुद्धि-सामर्थ्य दी है। मोटेराम-अच्छा, तो अब आपका प्रश्न होता है कि उत्तम पदार्थ किसे कहते हैं ? मैं इसकी विवेचना करता हूँ। जैसे भगवान् ने नाना प्रकार के रङ्ग नेत्रों के विनोदार्थ घनाये, उसी प्रकार मुख के लिए भी अनेक रसों को रचना को ; किन्तु इन समस्त रसों में श्रेष्ठ कौन है ? यह अपनी-अपनी रुचि है। लेकिन, वेदों और शास्त्रों के अनुसार मिष्ठ-स प्रधान माना जाता है। देवतागण इसी रस पर मुग्ध होते हैं, यहाँ तक कि सच्चिदानन्द, सर्वशक्तिमान् भगवान् को भी मिष्ठ पाको ही से अधिक -रुचि है। कोई ऐसे देवता का नाम बता सकता है जो नमकीन वस्तुओं को ग्रहण .
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