मनुष्य का परम धर्म २०३ श्रोतागण-नहीं महाराज, आप सर्वथा सत्य कहते हो। आपको कौन काट सकता है? मोटेराम-तो ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से निकले, बह निश्चय है। इसलिए सुख मानव शरीर का श्रेष्ठतम भाग है। अतएव मुल को सुख पहुँचाना, प्रत्येक प्राणो का परम कर्तव्य है। है या नहीं ? कोई काटता है हमारे वचन को ? सामने आये । हम उसे शास्त्र का प्रमाण दे सकते है। श्रोतागण-~-महाराज, आप ज्ञानी पुरुष हो। आपको काटने का साहस कौन कर सकता है ? मोटेशम-अच्छा, तो जब यह निश्चय हो गया कि मुख को सुख देना प्रत्येष्ठ प्राणी का परमधर्म है, तो क्या यह देखना कठिन है कि जो लोग मुख से विमुख है। वे फे भागो है। कोई काटता है इस वचन को ? श्रोतागण-महाराज, आप धन्य हो, आप न्याय-शास्त्र के पण्डित हो। मोटेराम -अब प्रश्न यह होता है कि मुख को सुख कैसे दिया जाय ! हम कहते हैं-जैसो तुममें श्रद्धा हो, जैसी तुममें सामर्थ्य हो। इसके अनेक प्रकार है। देवताओं के गुण गामो, ईश्वर-वन्दना करो, सत्संग करो और कठोर वचन न बोलो। इन बातों से मुख को सुख प्राप्त होगा। किसी को विपत्ति में देखो तो उसे ढारस दो। इससे मुन को सुख होगा। किन्तु इन सय उपायों से श्रेष्ठ, सबसे उत्तम, सबसे उप- योगी एक और हो ढा है। कोई आपमें ऐसा है जो उसे बतला दे? है कोई, पोले। श्रोतागण-महाराज, आपके सम्मुख कौन मुँह खोल सकता है। आप ही बताने की कृपा कीजिए। मोटेराम-अच्छा, तो हम चिल्लाकर, गला फाड़-फाड़कर कहते हैं कि वह इस सब विधियों से श्रेष्ठ है । उसी भाति जैसे चन्द्रमा समस्त नक्षत्रों में श्रेष्ठ है। श्रोतागण-महाराज, अब विलम्ब न कीजिए। यह कौन-सो विधि है। मोटेराम-अच्छा सुनिए, सावधान होकर सुनिए। वह विधि है मुख को उत्तम पदार्थों का भोजन करवाना, अच्छी-अच्छी वस्तु खिलाना। कोई काटता है हमारी बात को ? आये, हम उसे वेद-मन्त्रों का प्रमाण दें एक मनुष्य ने शहा की-यह समझ में नहीं आता कि सत्यभाषण से मिष्ठभक्षण क्योंकर सुख के लिए अधिक सुखकारी हो सकता है ?
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