पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१९४

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- क्षमा मुसलमानों को स्पेन-देश पर राज्य करते कई शताब्दियों बीत चुकी थीं। फली- खाओं की जगह मसजिद बनती जातो थी, घटों को जगह अज्ञान को आवाओं सुनाई देतो थी । गरनाता और अलहमरा में वे समय को नश्वर गति पर हंसनेवाले प्रासाद बन चुके थे, जिनके खंडहर अब तक देखनेवालों को अपने पूर्व ऐश्वर्य की झलक दिखाते हैं। ईसाइयों के गण्य-मान्य स्त्री और पुरुष मसीह को शरण छोड़कर इस लामो भ्रातृत्व में सम्मिलित होते जाते थे, और भाज तक इतिहासकारों को यह आश्चर्य है कि ईसाइयों का निशान वहीं क्योंकर घाको रहा । जो ईसाई-नेता अप तक मुसलमानों के सामने सिर न झुकाते थे, और अपने देश में स्वराज्य स्थापित करने का स्वप्न देख रहे थे, उनमें एक सौदागर दाऊद भी था। दाऊर विद्वान् और साहसी था। वह अपने इलाके में इसलाम को कदम न जमाने देता था । दीन और निर्धन ईसाई विद्रोही देश के अन्य प्रातों से आकर उसके शरणागत होते थे और वह बड़ी उदारता से उनका पालन-पोषण करता था। मुसलमान पाजद से सशक रहते थे। वे धर्म-पल से उस पर विजय न पाकर उसे शस्त्र बल से परास्त करना चाहते थे। पर दाऊद भी उनका सामना न करता । हाँ, जहाँ कहीं ईसाइयों के मुसलमान होने की खबर पाता, वहां हवा की तरह पहुँच जाता, भोर तर्क या विनय से उन्हें अपने धर्म पर अचल रहने को प्रेरणा करता । अन्त में मुसलमानों ने चारों तरफ से घेरकर उसे गिरफ्तार करने की तैयारी की। सेनाओं ने उसके इलाके को घेर लिया। दाऊर को प्राण रक्षा के लिए अपने सदन्धियों के साथ आगना पड़ा। वह घर से भागकर ग्रा- नाता में आया, जहां उन दिनों इसलामो राजधानो थी । वहाँ उनसे अलग रहकर वह अच्छे दिनों को प्रतीक्षा में जीवन व्यतीत करने कगा। मुसलमानों के गुप्तवर उसका पता लगाने के लिए बहुत सिर मारते थे, उसे पकड़ लाने के लिए बड़े-बड़े इनामो को विज्ञप्ति निकाली जाती थी, पर दाऊद को टोह न मिलती थी। ( २ ) एक दिन एकान्त-वास से उकताकर दाजद परनाता के एक बार में सैर करने घला गया । संध्या हो गई थी। मुसलमान नीचो अबाएँ पहने, बड़े-बड़े श्रमामे मिह १३ /