पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१७७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हो के नाम हैं। रहमान के मुंह से धन्यवाद के शब्द भी न निकल सके। बड़ी मुश्किल से भावों को रोककर बोला-इजर को इस नेकी का बदला खुदा देगा। मैं तो आज से अपने को आपका गुलाम ही समदूंगा। दाऊ-नहीं जी, तुम मेरे दोस्त हो। रहमान- नहीं हजूर, गुलाम । दाऊ-गुलाम झुटकारा पाने के लिए जो रुपये देता है, उसे मुक्तिधन कहते हैं। तुम बहुत पहले 'मुक्तिधन' मदा कर चुके । अम भूलकर भी यह शन्द मुँह से न निकालना ।