पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१६९

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यह कहकर उसने रहमान के हाथ से गाय को ले लेना चाहा मगर रहमान ने हामी न भरी । आखिर उन सबने निराश होकर अपनी राह ली। रहमान जब जरा दूर निकल आया, तो दाऊदयाल से बोला-हजूर, आप हिन्दू है, इसे लेकर आप पाळेगे, इसकी सेवा करेंगे। ये सब कसाई हैं। इनके हाथ में ५०) को भी सभी न बेचता । आप बड़े मौके से आ गये, नहीं तो ये सच जबरदस्ती गऊ को छीन ले जाते। बड़ी विपत में पड़ गया हूँ सरकार, तब यह गाय बेचरे निकला हूँ। नहीं तो इस घर को लक्ष्मी को कभी न बेचता। इसे अपने हाथों से पाला पोसा है । कसाइयों के हाथ कैसे बेच देता! सरकार इसे जितनी हो खलो देंगे उतना ही यह दुध देगी । भैंस का दूध भी इतना मोठा और गाड़ा नहीं होता । हजूर से एक अरज और है, अपने चरवाहे को डांट दीजिएगा कि इसे मारे-पीटे नहीं। दाऊदयाल ने चकित होकर रहमान की ओर देखा। भगवन् ! ' इस श्रेणी के मनुष्य में भी इतना सीबन्य, इतनो सहृश्यता है । यहाँ तो बड़े-बड़े तिलक-त्रिपुण्डधारी महात्मा कसाइयों के हाथ गठएं बेच जाते हैं, एक पैसे का घाटा भी नहीं उठाना चाहते । और यह गरीब ५) का घाटा सहकर इसलिए मेरे हाथ गऊ बेच रहा है कि यह किसी कमाई के हाथ न पड़ जाय । रोषों में भी इतनी समझ हो सकती है। उन्होंने घर आकर रहमान को रुपये दिये । रहमान ने रुपये गोठ में बांधे, एक बार फिर गऊ को प्रेम-भरी आँखों से देखा, और दाऊदयाल को सलाम करके चला गया। रहमान एक गरीब किसान था, और गरीब के सभी दुश्मन होते हैं। ज़ौदार ने इजाफा लगान का दावा दायर किया था। उसोको जवाबदेही काने के लिए रुपयों की जरूरत थी। घर में बैलों के सिधा कोई सम्पत्ति न थी। वह इस गऊ को प्राणों से भी प्रिय समझता था। पर रुपयों की कोई तदघोर न हो सकी, तो विवश होकर माय बेचनी पड़ी। ( २ ) पचौली में मुसलमानों के कई घर थे। अबकी कई साल के बाद हज का रास्ता खुला था । पाश्चात्य महासमर के दिनों में राह बन्द थी। गांव के कितने ही स्त्री पुरुष हज करने चले। रहमान की बूढी माता भी हज के लिए तैयार हुई। रहमान से पाली-बेटा, इतना सवाब करो। बस मेरे दिल में यहो एक अरमान पाको है । इस .