बात सुनकर वह सजग हो गया। उन्हें डाँटकर बोला-हमाले दादा की कौन पकलेगा?
मिस जोशी-सिपाही, और कौन?
पालक-हम सिपाही को मालेंगे।
यह कहकर वह एक कोने से अपने खेलने का डंडा उठा लाया और आपटे के पास वीरोचित भाव से खड़ा हो गया, मानों सिपाहियों से उनकी रक्षा कर रहा है।
मिस जोशी-आपका रक्षक तो बड़ा बहादुर मालूम होता है।
आपटे-इसकी भी एक कथा है। साल-भर होते हैं, यह लड़का खो गया था। मुझे रास्ते में मिला। मैं पूछता-पूछता इसे यहाँ लाया। उसी दिन से इन लोगों से मेरा इतना प्रेम हो गया कि इनके साथ रहने लगा।
मिस जोशो-आप कुछ अनुमान कर सकते हैं कि आपका वृत्तान्त सुनकर मैं आपको क्या समझ रही हूँ?
आपटे-वही, जो मैं वास्तव में हूँ-नीच, कमीना, धूर्त...
मिस जोशी-नहीं, आप मुझ पर फिर अन्याय कर रहे हैं। पहला अन्याय तो क्षमा कर सकती हूँ, यह अन्याय क्षमा नहीं कर सकती। इतनी प्रतिकूल दशाओं में पड़कर भी जिसका हृदय इतना पवित्र, इतना निष्कपट, इतना सदय हो, वह आदमी नहीं, देवता है। भगवन्, आपने मुझ पर जो आक्षेप किये वह सत्य हैं। मैं आपके अनुमान से कहीं भ्रष्ट हूँ। मैं इस योग्य भी नहीं हूँ कि आपको और ताक सकूँ। आपने अपने हृदय की विशालता दिखाकर मेरा असली स्वरूप मेरे सामने प्रकट कर दिया। मुझे क्षमा कीजिए, मुझ पर दया कीजिए।
यह कहते-कहते वह उनके पैरों पर गिर पड़ी। आपटे ने उसे उठा लिया और बोले-मिस जोशी, ईश्वर के लिए मुझे लज्जित न करो।
मिस जोशी ने गद्गद कण्ठ से कहा-आप इन दुष्टों के हाथ से मेरा उद्धार कीजिए, मुझे इस योग्य बनाइए कि आपकी विश्वास-पात्री बन सकूँ। ईश्वर साक्षी है कि मुझे कभी कभी अपनी दशा पर कितना दुःख होता है। मैं बार-बार चेष्टा करती हूँ कि अपनी दशा सुधारूँ। इस विलासिता के जाल को तोड़ दूँ जो मेरी आत्मा को चारों तरफ से जकड़े हुए है, पर दुर्बल आत्मा अपने निश्चय पर स्थिर नहीं रहती। मेरा पालन पोषण जिस ढंग से हुआ, उसका यह परिणाम होना स्वाभाविक-सा मालूम