१४६ मानसरोवर एक यूनानी-देखो-देखो, क्या कहता है ? इसरा- सच्चा आदमी मालूम होता है । तीसरा-अपने अपराधों को आप स्वीकार कर रहा है। चौथा-इसे क्षमा कर देना चाहिए, और वह सब बातें पूछ लेनी चाहिए । पाँचवा-टेखो, यह नहीं कहता कि मुझे छोड़ दो, हमको बार-बार याद दिलाता जाता है कि मुमा पर विश्वास न करो। छठा-रात-भर के कष्ट ने होश ठडे कर दिये, भव भाँखें खुली है। पासोनियम-क्या तुम लोग मुझे छोड़ने की बातचीत कर रहे हो ? मैं फिर कहता हूँ, में विश्वास के योग्य नहीं हूँ। मैं द्रोही हूँ। मुझे ईशानियों के पहुत-से मेद मालूम हैं, एक बार उनकी सेना में पहुँच जाऊँ तो उनका मित्र बनकर सर्वनाश' पर , पर मुझे अपने ऊपर विश्वास नहीं है। एक यूनानी-धोखेबाज इतनी सच्ची बात नहीं कह सकता ! दूसरा-पहले स्वार्थान्ध हो गया था, पर अब आँखें की हैं। सीसरा--देश-द्रोही से भी अपने मतलय की बातें मालूम कर लेने में कोई हानि नहीं है। अगर यह अपने वचन पूरे करे तो हमें इसे छोड़ देना चाहिए। चौथा-देवी को प्रेरणा से इसकी यह कायापलट हुई है। पाचवा-पापियों में भी आत्मा का प्रकाश रहता है और कष्ठ पाकर जाग्रत हो भाता है। यह समाना कि निसने एक बार पाप किया वह फिर कभी पुण्य कर ही ७ नहीं सकता, मानव-चरित्र के एक प्रधान तत्त्व का अपमान करना है। छठा--हम इसको यहाँ से गाते वजाते ले चलेंगे। जन-धमूह को चकमा देना कितना आसान है। जन-सत्तावाद का सबसे निर्बल मा यही है। जनता तो नेक और बद को तमोज नहीं रखती, उस पर धूती, रंगे लियारों का आडू आसानी से चल जाता है। अभी एक दिन पहले जिस पासोनियस को गरदन पर तलवार चलाई जा रही थी, उसी को जलूस के साथ मन्दिर से निका- बने की तैयारियां होने लगी ; क्योंकि वह धूर्त था और जानता था कि जनता को कोल क्योकर घुमाई जा सकती है। एक स्त्री-गाने-बजानेवाले को बुलाओ, पासोनियस शरीफ है।
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