धिकार १४१ लोगों ने द्रोही का परिचय पाने के लिए और भी कितने ही प्रश्न किये, पर देवी ने कोई उत्तर न दिया। ( २ ) यूनानियों ने द्रोही की तलाश करनी शुरू की। किसके घर में से रात को गाने की आवाजें आती है ? सारे शहर में सन्ध्या होते स्यापा-सा छा जाता था। अगर कहीं भावाज सुनाई देती थी तो रोने की, हँसी और गाने को आवास कहाँ न सुनाई देती थी। दिन को सुगन्ध को लपटें किस घर से आती हैं। लोग जिधर जाते थे, उधर से दुर्गन्ध आतो थी । गलियों में कूड़े के ढेर पड़े थे, किसे इतनी फुरसत थी कि घर की सफाई करता, घर में सुगन्ध जलाता ; धोपियों का अभाव था, अधिकांश लड़ने चले गये थे, कपड़े तक न धुलते थे ; इत्र फुलेक कौन मलता । किसकी आँखों में मद को लालो झलकती है ? लाल लाखें दिखाई देती थों, लेकिन यह मद को लालो न थी, यह आँसुओं की लालो थो। मदिरा की पूानों पर खाक उड़ रही थी। इस जीवन और मृत्यु के सग्राम में विलास को किसे सूझती। लोगों ने सारा शहर छान मारा, लेकिन एक भी आँख ऐसी नजर न आई जो मद से लाल हो। कई दिन गुमर गये । शहर में पल-पल-भर पर रण-क्षेत्र से भयानक खबरें भातो थी और लोगों के प्राण सूखे जाते थे। भाधी रात का समय था। शहर में अन्धकार छाया हुआ था, मानों श्मशान हो। किसी को सूरत न दिखाई देती थी। जिन नाट्यशालों में तिल रखने की जगह न मिलती थी वहाँ सियार बोल रहे थे, जिन बाजारों में मनचले जवान जस्त्र-शस्त्र सजाये ऐंठते फिरते थे वहाँ उल्लू बोल रहे थे, मन्दिरों में न गाना होता था, बजाना। प्रासादों में भी अन्धकार छाया हुआ था। एक बूढ़ा यूनानी जिसका एकलौता लड़का लड़ाई के मैदान में था, घर से निका और न जाने फिन विचारों के तरक्ष मे देवो के मन्दिर की ओर चला। रास्ते में कहीं प्रकाश न था, कदम-कदम पर ठोकरें खाता था, पर आगे बढ़ता चला जाता। उसने निश्चय कर लिया था कि या तो आज देवी से विजय का वरदान लूंगा या उनके चरणों पर अपने को भेंट कर दूंगा।
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