. मानसरोवर रसोइया-हजूर, मुझे तो लोग धमकाते हैं कि मंदिर में न घुपने पाओगे। सिनहा--एक महीने की नोटिस दिये बगैर तुम नहीं जा सकते। साईस -हजूर, बिरादरी से बिगाड़ करके हम लोग कहाँ जायेंगे। हमारा आज से इस्तीफा है। हिसाब जब चाहे, कर दीजिएगा। मिस्टर सिनहा ने बहुत धमझाया, फिर दिलासा देने लगे, लेकिन नौकरी ने एक न मुनी। आध घण्टे के अन्दर सबों ने अपना-अपना रास्ता लिया। मिस्टर सिनहा दाँत पीसकर रह गये, लेकिन हाकिमों का काम कर रुकता है। उन्होंने उसो बक कोतवाल को खबर दी और कई आदमो बेगार में पकड़ आये। काम चल निकला। उसी दिन से मिस्टर सिनहा और हिन्द-समाज में खींचतान शुरू हुई । धोपी ने कपड़े धोना बन्द कर दिया । वाले ने दृध लाने में आनाकानी की। नाई ने हजामत पनानी छोड़ी। इन विपत्तियों पर पन्नीजो का रोना-धोना और भी गला था। उन्हें रोष भयंकर स्वप्न दिखाई देते । रात को एक कमरे से दूसरे में जाते प्राण निकलते थे । किसो का जरा सिर भी दुखता तो नहों में जान समा जाती। सबसे बड़ी मुसीवत यह थी कि अपने सम्बन्धियों ने भी आना-जाना छोड़ दिया। एक दिन पाले आये, मगर बिना पानी पिये ही चले गये । इसी तरह एक दिन बहनोई का आगमन हुआ। उन्होंने पान तक न वाया। मिस्टर सिनहा बड़े धैर्य से यह सारा तिरस्कार सहते जाते थे । अब तक उनकी आर्थिक हानि न हुई थी। गरज के पावले झक मारकर आते हो थे और नज़र-नजराना मिलता ही था। फिर विशेष चिन्ता का कोई कारण न था। लेकिन बिरादरी से वैर करना पानी में रहकर मगर से वैर करना है। कोई-न- कोई ऐसा अवसर अवश्य ही आ जाता है, जब हमको बिरादरी के सामने सिर झुकाना पाता है। मिस्टर सिनहा को भी साल के अन्दर ही ऐसा अवसर आ पड़ा। यह उनकी पुत्री का विवाह था। यही वह समस्या है जो बड़े-बड़े हेकड़ो का घमंड चूर- चूर कर देती है। आप किसी के आने-जाने को परवा न करें, हुक्का-पानी, भोज-भात, मेल-जोल, किसी बात की परवा न करें, मगर लड़की का विवाह तो न टलनेवाली बला है। उससे बचकर आप कहाँ जायेंगे। मिस्टर सिनहा को इस बात का दरदगा तो पहले हो था कि त्रिवेणी के विवाह में बाधाएँ पढ़ेंगी, लेकिन उन्हें विश्वास था कि द्रव्य की अपार शक्ति इस मुश्किल को हल कर देगी। कुछ दिनों तक उन्होंने बान-
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