दण्ड १३३. 1 . समझा होगा, अच्छा उल्लू फँसा। भार ६ दिन के उपवास करने से पांच हजार मिले तो मैं महीने में कम-से-कम पांच मरतया यह अनुष्ठान करूं । पाँच हजार नहीं, कोई मुझे एक ही हजार दे दे। यहाँ तो महीने भर नाक रगड़ता हूँ तब जाके ६.०) के दर्शन होते हैं। नोच-खसोट से भी शायद ही किसो महीने में इससे ज्यादा मिलता हो। बैठा मेरो राह देख रहा होगा। लेना रुपये, मुंह मिठा हो जायगा। वह चारपाई पर लेटना चाहते थे कि उनकी पत्नीजी आकर खड़ी हो गई। उनके सिर के बाल खुले हुए थे, आँखें सहमो हुई, रह रहकर कांप उठतो थी। मुँह से शाब्द न निकलता था। बड़ो मुश्किल से बोली- आधो रात तो हो गई होगी। तुम जगत पाड़े के पास चले जाओ। मैंने अभी ऐसा बुरा सपना देखा है कि अभी तक कलेजा धड़क रहा है, जान सकट में पड़ी हुई थी। नाके किसी तरह उसे टालो। मिस्टर सिनहा-वहीं से तो चला आ रहा हूँ। मुझे तुमसे ज्यादा फ्रिक है। अभी आकर खड़ा ही हुआ था कि तुम आई। पत्नी-अच्छा ! तो तुम गये थे। क्या बातें हुई, राजो हुआ ? सिनहा-पांच हमार रुपया मांगता है। पत्नी-पांच हजार सिनहा-झौसी कम नहीं करता और मेरे पास इस वक एक हजार से ज्यादा न होंगे। पत्नीजो ने एक क्षण सोचकर कहा-जितना मांगता है उतना हो दे दो, किसी तरह गला तो छूटे । तुम्हारे पास रुपये न हों तो मैं दे दूंगी। अभी से सपने दिखाई दिने लगे हैं। मरा तो प्राण कैसे बचेंगे। बोलता-चालता है न ? . मिस्टर सिनहा अगर आपनूप थे तो उनको पत्नी चंदन । सिनहा उनके गुलाम थे। उनके इशारों पर चलते थे। पत्नीजी भी पति शासन-कला में कुशल थीं। सौंदर्य और अज्ञान में अपवाद है। सुन्दरो कभी भोली नहीं होती। वह पुरुष के मर्मस्थल पर आसन जमाना खूब जानती है। सिनहा-तो लाओ, देता आऊँ, लेकिन आदमी बड़ा वषड़ है, कहीं रुपये लेकर सबको दिखाता फिरे तो? पत्नी-इसको इसी वक यहां से भगाना होगा। .
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