१२८ मानसरोवर आया। यह उसकी बरसों की कमाई थी। बरसों पेट काटकर, तब जलाकर, मन बांधकर, झुठी गवाहियां देकर, उसने यह थातो सवय कर पाई थी। उसका हाथों से निकलना प्राण निकलने से कम दुःखदायी न था । जगत पौड़े के चले जाने के बाद, कोई ९ बजे रात को, जंट साहा के बंगले पर एक तांगा आकर रुका और उस पर से पण्डित सत्यदेव उतरे जो राजा साहब शिवपुर के मुख्तार थे मिस्टर सिनहा ने मुसकिराकर कहा-आप शायद अपने इलाके में गरीबों को न रहने देंगे। इतना जुल्म ! सत्यदेव-गरीबपरवर, यह कहिए कि गरीबों के मारे अब इलाके में हमारा रहना मुश्किल हो रहा है । आप जानते हैं, सीधी उँगली घी नहीं निकलता। जमी- दार को कुछ न कुछ सख्ती करनी ही पड़ती है, मगर अब यह हाल है कि हमने पारा चूँ भो को तो उन्हीं गरीबों को त्योरियां बदल जाती हैं। सब मुफ्त में जमीन नोताना चाहते हैं। लगान मौगिए तो फौजदारी का दावा करने को तयार ! अब इसी जगत पौड़े को देखिए । गंगा-कसम है हुजूर, सरासर झूठा दावा है । हुजूर से कोई बात छिपी तो रह नहीं सकती। अगर जगत पौड़े यह मुकदमा जीत गया तो हमें बोरिया-बधना छोड़कर भागना पड़ेगा। अब हुजूर ही नसायें तो बस सकते हैं । राजा साहब ने हजूर को सलाम कहा है और अर्ज की है कि इस मामले में जगत पड़ेि की ऐसी खबर लें कि वह भी याद करे । मिस्टर सिनहा ने भवें सिकोड़कर कहा-कानून मेरे घर तो नहीं बनता ? सत्यदेव-हुजूर के हाथ में सब कुछ है । यह कहकर गिन्नियों को एक गड्डी निकालकर मेज पर रख दी। मिस्टर सिनहा ने गड्डी को आँखों से गिनकर कहा-इन्हें मेरी तरफ से राजा साहब को नजर कर दीजिएगा । आखिर आप कोई वकील तो करेंगे हो । उसे क्या दीजिएगा ? सत्यदेव -यह तो हुजूर के हाथ में है। जितनी ही पेशियां होंगो उतना ही खर्च भी बढ़ेगा। सिनहा-मैं चाहूँ तो महीनों लटका सकता हूँ। सत्यदेव-हाँ, इससे कौन इनकार कर सकता है। सिनहा-पांच पेशियां भी हुई तो आपके कम-से-कम एक हजार उक
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