आपटे ने जगन्नाथ की ओर देखकर कमरे से बाहर चले जाने का इशास-किया। उसको स्त्रो भी बाहर चली गई। केवल बालक रह गया। वह मिस जोशो की ओर बार-बार उत्सुक आँखों से देखता था, मानों पूछ रहा हो कि तुम आपटे दादा की कौन हो?
मिस जोशो ने चारपाई से उतरकर जमीन पर बैठते हुए कहा-आप कुछ अनु- मान कर सकते हैं कि मैं इस वक्त क्यों आई हूँ ?
आपटे ने झंपते हुए कहा-आप की कृपा के सिवा और क्या कारण सकता है।
मिस जोशी-नहीं, ससार अभी इतना उदार नहीं हुआ है कि आप जिसे गालियाँ दें, वह आपको धन्यवाद दे। आपको याद है, कल मापने अपने व्याख्यान में मुम्म पर क्या-क्या आक्षेप किये थे ? मैं आपसे जोर देकर कहती हूँ कि वे आक्षेप करके आपने मुझ पर घोर अत्याचार झिया है। आप-जैसे सहाय, शोलवान्, विद्वान् आदमी से मुझे ऐसी आशा न थी ! मैं अबला हूँ, मेरी रक्षा करनेवाला कोई नहीं है। क्या आपको उचित था कि एक अवला पर मिथ्यारोपण करें। अगर मैं पुरुष होतो तो आपसे duel खेलने का आग्रह करतो । अबला हूँ, इसलिए आपको अजनता को स्पर्श करना हो मेरे हाथ में है। आपने मुम्स पर जो लांछन लगाये हैं, वे सर्वथा निर्मूल हैं।
आपटे ने हड़ता से कहा-अनुमान तो बाहरी प्रमाणों से हो किया जाता है।
मिस जोशी-बाहरी प्रमाणों से आप किसी के अन्तस्तल को बात नहीं जान सकते।
आपटे-जिसका भीतर-बाहर एक न हो, उसे देखकर भ्रम में पड़ जाना- स्वाभाविक है।
मिस जोशी-हां, तो यह आपका भ्रम है और मैं चाहती हूँ कि आप उस कलंक को मिटा दें जो आपने मुझ पर लगाया है। आप इसके लिए प्रायश्चित्त करेंगे ?
आपटे--अगर न करूं तो मुझसे बड़ा दुरात्मा ससार में न होगा।
मिस जोशी-आप मुझ पर विश्वास करते हैं ?
आपटे-मैंने आज तक किसी रमणी पर अविश्वास नहीं किया।
मिस बोशी- क्या आपको यह सन्देह हो रहा है कि मैं आपके साथ कौशल कर रही हूँ!