तंतर १११, एक बहरी उसमें भावर चरा फरती थी। इस समय भी यह चर रही थी। माबू साहक ने बड़े लड़के से कहा-सिद्धू, रा उस पारी को पकड़ो, तो इसे एध पिलायें, शायद भूखो है बेचारो । देखो, तुम्हारी नन्ही-सी बहन है न! इसे रोज़ हवा में खेलाया करो। सिद्धू को दिलगी हाध माई, उसका छोटा भाई भी दौड़ा, दोनों ने घेरकर बकरी को पकड़ा और उसका कान पकड़े हुए सामने लाये। पिता ने शिशु का मुँह बकरी के थन से लगा दिया। लड़की चुबलाने लगो, और एक क्षण में पध की धार उसके मुंह में जाने लगी। मानो टिमटिमाते दोपक में तेल पड़ जाय । लपटी का सुख खिल उठा । आज शायद पहली बार उसली क्षुधा तृप्त हुई थी। वह पिता की गोद में हुमक-हुमका खेलने लगी । कइयों ने भी उसे खूब नचाया-फुदाया । उस दिन से सिद्धू को मनोरजन हा एक गया विषय मिल गया। बालों को पच्चों से बहुत प्रेम होता है । अगर किसी घोसले में चिड़िया का एच्चा देख पायें तो गार-मार वहाँ जायेंगे, देखेंगे कि माता बच्चे को कैसे दाना चुगाती है, पच्चा कैसे चोच खोलता है, कैसे दाना लेते समय परों को फड़फड़ाकर चंचें करता है, आपस में बड़े गम्भीर भाव से उसकी चरचा करेंगे, अपने अन्य साथियों को ले जाकर उसे दिखायेंगे। सिधू ताल में लगा रहता, ज्योंहो माता भोजन पनाने या स्नान करने जातो, तुरन्त पच्ची को लेकर आता और बकरी को पकड़कर उसके थन छ शिशु का मुंह लगा देता, कभी-कभी दिन में दो-दो तोन-तीन बार पिलाता । पकरी को भूसी-चोकर खिलाकर ऐसा परवा लिया कि वह स्वय चोजर के लोभ से चली माती और दूध देकर चली जाती । इस माति कोई एक महीना गुजर गया, लड़की हृष्ट पुष्ट हो गई, मुख पुष्प के समान विकसित हो गया । आखें जाग उठी, शिशु-झाल को सरल आमामन को हरने लगी। माता उसे देख-देखकर चकित होती थी। किसी से कुछ कह तो न सकती, पर दिल में उसे भाशका होती थी कि अब यह मरने की नहीं, हमी लोगों के सिर जायेगी। कदाचित् ईश्वर इसकी रक्षा कर रहे हैं, जभी तो दिन-दिन निखाती भातो है, नहीं अब तक तो ईश्वर के श पहुँच गई होती। . मगर दादी माता से कहीं ज्यादा चिन्तित थी । उसे भ्रम होने लगा कि वह बच्ची को खूब दुध पिला रही है, सार को पाल रही है। शिशु की और आँख उठाकर भो
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