पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१०९

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मानसरोवर चाहिए। (धीरे से ) लड़कौ दुबली-पतलो भी नहीं है। तीनों लड़कों से हृष्ट-पुष्ट है। बड़ी-बड़ी आँखें हैं, पतले-पतले लाल लाल ओठ है, जैसे गुलाण की पत्तो । गोरा- चिट्टा रम है, लम्बी-सी नाक । कलमुही नहलाते समय रोई भी नहीं, टुकुर-टुकुर ताकती रही, यह सब लच्छन कुछ अच्छे थोड़े ही हैं ! दामोदरदत्त के तीनों लड़के साँवले थे, कुछ विशेष रूपवान् भी न थे, लड़की के रूप का मखान सुनकर उनका चित्त कुछ प्रमश हुआ । बोले- अम्माँजी, तुम भग- वान् का नाम लेकर गानेवालियों को बुला भेजो, गाना-बनाना होने दो। भाग्य में जो कुछ है, वह तो होगा ही। माता-जी तो हुलसता ही नहीं, लीं क्या ! दामोदर--नानी न होने से काठ का निवारण तो होगा नहीं, कि हो जायगा ? अगर इतने सस्ते जान छूटे तो न कराओ गाना। माता--बुलाये लेती हूँ बेटा, जो कुछ होना था वह तो हो गया। इतने में, दाई ने सौर में से पुकारकर कहा-बहुजी कहती हैं, गाना-वाना कराने का काम नहीं है। माता-भला-भला, उनसे कहो, चुपकी बैठी रहें, बाहर निकलकर मनमानी करेंगी, मारह ही दिन है, हुत दिन नहीं है, बहुत इतरातो फिरती थीं, यह न करूँगी, वह न हँगी, देवी क्या है, देवता क्या है, मरदों की बातें सुनकर वही रट लगाने लगती थी, तो अब चुपके से बैठती क्यों नहीं। मेमें तो तेतर का अशुभ नहीं मानती, और सश मातों में मेमों की बराबरी करती है तो इस बात में भी करें। यह कहकर माताजी ने नाइन को भेजा कि जाकर गानेवालियों को बुला ला, पड़ोस में भी कहतो जाना। सवेरा होते ही बड़ा लड़का सोकर उठा और आँखें मलता हुआ आकर दाक्षे से 'पूछने लगा- वो अम्मा, कल अम्मा को क्या हुआ ? माता-बड़को तो हुई है। बालक खुशो से उछलकर बोला-भो हो हो, पैजनियां पहन-पहनकर छुनछुन चलेगी, ज़रा मुझे दिखा दो दाशेजी। माता-भरे, क्या सौर में जायेगा, पागल हो गया है क्या ? --