पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१०२

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माता का हृदय १०१ आज से तुम इसकी माता हो जाओ। तुम इसे अपने घर ले जाओ । जहाँ चाहे, ले जाओ। तुम्हारो गोद में देकर मुझे फिर कोई चिंता न रहेगी। वास्तव में तुम्ही इसको माता हो । मैं तो राक्षसी हूँ। माधवी-बहुजो, भावान् सह कुशल करेंगे, क्यों जो इतना छोटा करतो हो ? मिस्टर बागची-नहीं-नहीं बूढ़ी माता, इसमें कोई हरज नहीं है । मैं मस्तिष्क से तो इन बातों को ढकोसला ही समझता हूँ, लेकिन हृदय से इन्हें दूर नहीं कर सकता। मुझे स्वय मेरी माताजी ने एक धोधिन के हाथ बेच दिया था। मेरे तीन माई मर चुके थे । मैं जो बच गया तो मां-बाप ने समझा, बेचने हो से इसकी जान बच गई । तुम इस शिशु को पालो-पोसो । इसे अपना पुत्र समझो । खर्च हम बराबर देते रहेंगे। इसको कोई चिन्ता मत करना। कभी-कभी जन हमारा जी चाहेगा, माकर देख लिया करेंगे। हमें विश्वास है कि तुम इसकी रक्षा हम लोगों से छहीं अच्छी तरह कर सकती हो। मैं कुकी हूँ। जिस पेशे में हूँ, उसमें कुकर्म किये बगैर काम नहीं चल सन्ता। झूठी शहादत बनानी हो पड़तो हैं, निरपरायों को फंसाना ही पाता है। आत्मा इतनी दुर्बल हो गई है कि प्रलोभन में पड़ ही जाती है । जानता है कि बुराई का फल बुरा ही होता है, पर परिस्थिति से मजबूर हूँ। अगर ऐसा न करूं तो आज नालायक बनाकर निकाल दिया जाऊँ। अंगरेज हजारों भूलें करें, कोई नहीं पूछता। हिन्दुस्तानी एक भूल भी कर पैठे तो सारे अफसर उसके सिर हो जाते हैं। हिन्दुस्तानियों को तो कोई बड़ा पद न मिले वही अच्छा । पद पाकर तो उनकी आत्मा का पतन हो जाता है। उनको अपनो हिन्दुस्तानियत का दोष मिटाने के लिए कितनी हो ऐसी बातें करनी पड़ती हैं जिनका अँगरेज़ के दिल में कभी खयाल ही नहीं पैदा हो सकता । तो बोलो, स्वीकार करती हो ? माधवी गद्गद होकर पोली-बाबूजी, आपकी यह इच्छा है तो मुझसे भी जो कुछ पन पड़ेगा, आपकी सेवा कर देगी। भावान् वालक को अमर करें, मेरी तो उनसे यही विनती है। माधवी को ऐसा मालम हो रहा था कि स्वर्ग के द्वार सामने खुले हैं और स्वर्ग को देवियां उसे अञ्चल फैला फैलाकर माशोर्वाद दे रही है, मानों उसके अन्तस्तल में प्रकाश की लहरें-सी उठ रही हैं । इस स्नेहमय सेवा में कितनी शान्ति थी? बाल अभी तक चादर ओढे सो रहा था। माधवो ने दूध गरम हो जाने पर