माता का हृदय ९९ । साधवी-घूस भी तो मिलती है? मिसेज़ बागची-बूढ़ा, ऐसी कमाई में परकत नहीं होती । यही क्यों, सच पूछो तो इसी घूस ने हमारी यह दुर्गति कर रखी है। क्या जाने औरों को कैसे हम होती है। यहां तो जब ऐसे रुपये आते हैं तो कोई-न-कोई नुकसान भी अवश्य हो जाता है। एक भाता है तो दो लेकर जाता है। वार-पार मना करतो हूँ, हराम की कौमी घर में न लाया करो, लकिन मेरो कौन सुनता है। बात यह थी कि माधवी को बालक से स्नेह होता जाता था। उसके अमंगल को कल्पना भी वह न कर सकतो थी । वह अप उसी को लोद सोती और उसी की नीद खागती थी। अपने सर्वनाश को पात याद करके एक क्षण के लिए उसे बागचो पर शोध तो हो आता था और घाव फिर हरा हो जाता था, पर मन पर कुत्सित भावों का आधिपत्य न श। घाव भर रहा था, केवल ठेस लगने से दर्द हो जाता था। उसमें स्त्रय टोस या जलन न थी । इस परिवार पर अब उसे दया आतो थो। सोचतो, बेचारे यह छौन-कपट न करें तो केसे गुमर हो । लड़कियों का विवाह कहाँ से करेंगे। स्त्री को जप देखो, बीमार हो रहती है। उस पर बाबूजो को एक बोतल शराब भी रोज चाहिए। यह लोग तो स्वयं अभागे हैं। जिसके घर में ५-५ क्वारी कन्याएँ हों, बालक हो-होकर मर जाते हों, परनो सदा योमार रहतो हो, स्वामी शराम का लती हो, उस पर तो यो हो ईश्वर का कोप है। इनते तो मैं अमागिनी हो अच्छो । (४) दुर्मल बालकों के लिए बरसात बुरो चला है । सभी खासी है, भो ज्वर, कमो दस्त । जज हवा में हो शीत भरी हो तो कोई कहाँ तक पचाये । मानो एक दिन अपने घर चली गई थी। बच्चा रोने लगा तो मां ने एक नौकर को दिया, इसे बाहर से पहला का। नौकर ने बाहर ले जाकर हरी-हरी घास पर बैठा दिया। पानो बरस- कर निकल गया था। भूमि गीली हो रही थी। कहीं-कहीं पानी भी जमा हो गया था। बालक को पानी में छपके लगाने से ज्यादा प्यारा और कौन खेल हो सकता है। खूप प्रेम से उमक-उमझकर पानी में लोटने लगा। नौकर बैठा और आदमियों के साथ गपशप करता रहा। इस तरह घण्टी गुमर गये। बच्चे ने खूब सरो खाई । घर आया तो उसको नाक पह रहो यो। रात को माधयो ने आकर देखा तो बच्चा खास रहा था। भावो रात के करीब उसके गले से खुरखुर को आवाज निकलने लगो।
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