पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/६

यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(४)

सम्पादक पण्डित माधवराव सप्रे ही थे। 'एक भारतीय आत्मा' पण्डित माखनलाल चतुर्वेदी ने सप्रेजी से प्रेरणा लेकर 'कर्मवीर' निकाला जिसने निर्भीक वाणी और राष्ट्र-प्रेम का अद्वितीय कीर्तिमान स्थापित किया। सप्रेजी से प्रेरणा लेनेवालों में अन्य हिन्दी-सेवी पण्डित जगन्नाथप्रसाद शुक्ल, लक्ष्मीधर वाजपेयी तथा अम्बिकाप्रसाद वाजपेयी भी कम उल्लेखनीय नहीं हैं। निश्चय ही सप्रेजी का व्यक्तित्व और कृतित्व अत्यन्त प्रभावी था। हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने देहरादून अधिवेशन में सप्रेजी को सभापति का गौरवपूर्ण पद प्रदान किया। 'छत्तीसगढ़-मित्र', 'हिन्दी केशरी' और 'हिन्दी ग्रंथमाला' के संचालन, सम्पादन तथा प्रकाशन से जो ख्याति उन्हें मिल चुकी थी, यह उसी का प्रतिफल था। इस संग्रह में प्रकाशित सभी कहानियाँ १९००-१९०१ ई० के बीच 'छत्तीसगढ़मित्र' में लगभग सवा वर्ष के अन्तराल में प्रकाशित हुई थीं। ये छह कहानियाँ हिन्दी कहानी के उद्भव की सीमा पर स्थित हैं। इनमें काव्यात्मकता, आदर्शवाद और यथार्थ की मिली-जुली विचित्र स्थिति दिखाई देती है। 'एक टोकरी भर मिट्टी' कहानी सबसे अधिक ध्यान आकृष्ट करती है क्योंकि वह हिन्दी की तथाकथित प्रथम कहानी 'इन्दुमती' के समकक्ष दिखाई देती है। 'सारिका' में श्री कमलेश्वर द्वारा उसके प्रकाशन तथा बाद में श्री देबीप्रसाद वर्मा और डॉ॰ बच्चन सिंह आदि के द्वारा वाद-विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाने से वह और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है। सप्रेजी की कहानियों में बहुत कुछ ऐसा है जो हिन्दी कहानी के स्वरूप-विकास की नितान्त प्रारम्भिक स्थिति का द्योतन करता है। अवश्य ही उससे हिन्दी के इतिहास-लेखकों तथा अनुचिन्तकों को प्रचलित मान्यताओं पर पुनर्विचार करने की प्रेरणा मिलेगी। यह आवश्क नहीं है कि किसी एक ही कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी का श्रेय दे दिया जाय, अनेक कहानियाँ प्राथमिकता के इस श्रेय की भागीदार हो सकती हैं। निःसन्देह सप्रेजी की कहानियाँ ऐसी ही हैं। हिन्दी-जगत् में इनके प्रकाशन का स्वागत होगा––इसका मुझे पूर्ण विश्वास है।

जगदीश गुप्त

सचिव