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अथवा आश्चर्य से चकित न होकर अलप्तगीन ने बड़े सन्तोष से कहा, "तुम जानते हो कि जहीरा मेरी इकलौती लड़की है। मेरे लिए आज सोलह वर्ष से वही एक आनन्द का स्थान है। अब उसको भी सुख मिलने के दिन आ गए। मेरा कर्तव्य यही है कि हर एक प्रकार से उसके सुख की वृद्धि करूँ। बड़े-बड़े शहजादों और अमीरों ने उसकी शादी माँगी, पर उसने एक को भी पसन्द न किया। अगर वह तुमको पसन्द करे तो मेरी मनाई नहीं।" अमीर ने जवाब दिया कि शाहजादी ने मुझ पर अपनी अनुकूलता दिखाने की कृपा की है। सिर्फ आपकी आज्ञा चाहिए।
लड़की की यह इच्छा देख कर बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ। जहीरा ने अत्यन्त योग्य वर को ही अपना प्रेमी दिखाया। इससे वह अपने तईं को धन्यवाद देने लगा। उसने तुरन्त अपनी अनुमति प्रगट की और बड़े समारोह से दोनों की शादी कर दी। जहीरा ने जिन-जिन अमीरों को अस्वीकार किया था, वे अपने मन में जलने लगे। पर शहर के सब लोग बहुत ही प्रसन्न हुए। सारे खुरासन में आनन्द की बधाई बजने लगी।
शाहजादी के ब्याह के कुछ दिन पीछे, हिजरी सन् ३५१ में अलप्तगीन ने गजनी के बादशाह मनसूर से लड़ाई की तैयारी की। मनसूर हार गया और अलप्तगीन ने अपने दामाद की सहायता से गजनी राज्य हस्तगत कर लिया। आगे सन् ६७५ ई॰ में (अर्थात् ३६५ हिजरी में) अलप्तगीन का देहान्त हो गया और उसका लड़का अबू इसहाक गद्दी पर बैठा। थोड़े ही दिनों में अपने बहनोई के साथ उसने बुखारा पर चढ़ाई की। मनसूर, अमीर के पराक्रम और शौर्य से अपरिचित न था। उसने उन दोनों का बहुत कुछ आदर सत्कार किया और गजनी का राज्य भी सौंप दिया। परन्तु राज्य-सुख का