पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/४९

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इसीलिए अब वह अपने दुख के दिन भूल कर सुख से रहने लगा। ऐसी एक भी चीज न थी कि जिस पर उसका मन लगता और वह उसे न मिल सकती। उसके स्वप्न की बात पूरी होने में अब कौन-सी त्रुटि थी!

अलप्तगीन की जहीरा नाम की एक अत्यंत रूपवती और सद्‌गुणी कन्या थी। इस समय वह ऐन जवानी में होने के कारण केवल अद्वितीय मालूम होती थी। बड़े-बड़े सरदारों और अमीरों ने उससे शादी करने की बातचीत निकाली, परन्तु उसने किसी को भी पसंद न किया। जहीरा अपने माँ-बाप की इकलौती लड़की थी। इसलिए अलप्तगीन उसको बहुत ही चाहता था। जब उसने यह हाल सुना कि लड़की ने अपने अमीरों में से किसी को भी पसंद नहीं किया, तब उसके मन में बड़ी भारी चिंता उत्पन्न हुई कि अब वंश कैसे चलेगा। तथापि वह भली भाँति जानता था कि जहीरा कोई साधारण लड़की नहीं है। वह बहुत समझदार और चतुर है। इसलिए उसने इस काम में कुछ छेड़छाड़ करना ठीक न समझा। जो कुछ हो, लड़की के मन से होना चाहिए। उसके अधिकार में किसी तरह की रोक-टोक न करने का बादशाह ने पूरा-पूरा निश्चय कर लिया।

इस किस्से का मुख्य नायक अमीरुल-उमरा बादशाह के महलों में ही रहता था। शाहजादी ने उसे कई बार देखा भी था। कभी-कभी तो आपस में उन दोनों की बातचीत भी हुआ करती थी। इस प्रकार के कई प्रसंग आते-आते एक दूसरे को चाहने लगे। चाह से परस्पर अनुराग उत्पन्न हुआ और अब अमीर को यह भी मालूम हो गया कि उसके सहवास से शाहजादी खुश होती है। परन्तु जब उसको याद आ जाती कि शाहजादी ने अमीरों को निराश किया है, तो उसका मन उदास हो जाता। तो भी प्रेम के वश होकर आशा करने लगता कि मुझे इसका पलटा अवश्य ही मिलेगा।