(४८)
लिखा है, वही होगा––ऐसा समझकर संतोष-वृत्ति से रहने का निश्चय किया।
जिस व्यापारी का वर्णन ऊपर कर चुके हैं, वह गुलाम बेचने का रोजगार करता था। जब बटोही बिलकुल चंगा हो गया तो उसको अपने साथ लेकर वह खुरासान को रवाना हुआ। कई दिन तक रास्ता चलने पर वे उस शहर में पहुँचे। वहाँ उसने यह बात प्रकट की कि उसके पास एक अच्छा खूबसूरत जवान गुलाम बिकाऊ है। कई ग्राहक आए, पर कीमत न पटी। व्यापारी को आशा थी कि बहुत कुछ लाभ होगा। इसलिए उसने कीमत भी अधिक बढ़ा दी थी। जब सब ग्राहक लौट गए तो व्यापारी अत्यंत निराश हो गया। भाग्यवशात् उसको एक हिकमत सूझी। उसने विचार किया कि स्वतंत्रता सबको प्यारी होती है, यदि वह इस मनुष्य को मुक्त कर दे तो कदाचित् यह दूसरों की अपेक्षा अधिक द्रव्य देगा, क्योंकि अपने स्वातंत्र्य की आवश्यकता जितनी इसे होगी, उतनी दूसरे किसी को भी नहीं हो सकती। यह विचार मन में आते ही वह हर्ष से फूला न समाया। तुरंत ही उस बटोही के पास गया और बोला––
"क्यों, तुझे अपनी स्वतंत्रता पाने की इच्छा है क्या?"
"वाह साहिब! आप यह क्या पूछते हैं? क्या भूखे को कोई ऐसा भी पूछता है कि तुझे अन्न चाहिए?"
"अच्छा, तुझे स्वतंत्रता मिल जाय तो उसके बदले तू क्या देगा?"
"आपको क्या चाहिए?"
"द्रव्य।"
"नहीं, यह तो कभी नहीं हो सकता। स्वतंत्रता मनुष्य मात्र को