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तक वैसा ही बना था। इससे उसका मन कुछ शांत हुआ और इसी अवस्था में उसे गहरी नींद ने आ घेरा। मध्य रात्रि के समय उसने एक स्वप्न देखा, वह यह कि एक तेजस्वी पुरुष (कदाचित् पैगम्बर हो) इतने जगमगाते हुए वस्त्र पहिन कर उसके सन्मुख आया कि उसकी नजर भी वहाँ ठहर न सकी। आते ही उसने कहा––
"आज तूने एक गूँगे जानवर का जीव बचाया है, इस सत्कार्य से परमात्मा बहुत प्रसन्न हुए हैं, इसके पलटे तुझको गजनी का राज्य मिलेगा। जिस प्रकार की भूतदया तूने आज जानवरों के साथ दिखलाई है, वैसी ही सदैव मनुष्यों के साथ रखना।"
इतना कहकर वह दिव्य पुरुष गुप्त हो गया और बटोही भी जाग उठा। चन्द्रमा का प्रकाश अभी तक मलीन नहीं हुआ था। अर्थात् बहुत कुछ रात शेष बची थी। परन्तु उस पथिक को फिर से नींद न आई। उसको यह स्वप्न जागृत अवस्था में भी नेत्रों के सन्मुख दिखाई देता था। इसलिए बिछौने पर पड़े-पड़े अस्ताचल से नीचे उतरते हुए चन्द्रमा की शोभा देखता रहा।
चन्द्रास्त होते ही क्षण भर वहाँ अँधियारा-सा छा गया। फिर पूर्व दिशा में अरुणोदय होने लगा। परन्तु चारों ओर कुहरा छाया हुआ था। इसीलिए सूर्य का प्रकाश कुछ धुँधला-सा दीख पड़ता था। लता-पर्ण तथा वृक्ष-शाखा, मोती के समान चमकने वाली ओस की बूँदों से सुशोभित हो गई थी। रात भर में इतनी ओस जम गई थी कि उसके बोझ से पत्ते झुक गये और उनमें से ओस की बूँदें टप-टप-टप करके नीचे गिरने लगीं। थोड़ी देर में सूर्य का प्रकाश पहाड़ियों की चोटी पर से तराई पहुँचा और प्रातःकाल की मंद हवा बहने लगी। इससे सब ओस टपक कर गिर पड़ी और जमीन ऐसी भीग गई कि मानो रात में वर्षा हुई हो। अब बटोही अपने बिछौने पर से उठा।