पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/३६

यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(३६)

के साथ चरते देखा। हरिणी तो डर कर भाग गई, परन्तु वह बच्चा बिलकुल छोटा, हाल ही में पैदा हुआ था, इसलिए दौड़ न सका। बटोही ने उसे उठा लिया और उसके पैर बाँधकर बगल में दबा आगे चलने लगा।

सायंकाल होते ही पड़ाव की जगह देखकर बटोही ने काँधे पर से अपना सामान नीचे उतारा और हिरण के बच्चे को झाड़ से बाँध दिया। लकड़ियाँ मिल गईं और चकमक पत्थर से आगी बनाकर उस बच्चे के पास गया। इच्छा यह थी कि उसको मारकर अपनी जठराग्नि बुझावे। इतने में थोड़ी दूर पर उसकी माँ हताश होकर कुछ काल तक अपने बच्चे की ओर, फिर उस प्रवासी की ओर, कारुण्य-दृष्टि से देखती हुई खड़ी थी। उधर बटोही की नजर पड़ते ही उसने अपनी गर्दन ऊँची कर दी। शरीर शिथिल हो गया, नेत्रों से अश्रु की धारा बहने लगी और अत्यन्त दीन मुद्रा धारण करके उसने बच्चे की ओर अपनी दृष्टि लौटाई। बेचारे बच्चे को यह मालूम भी न था कि उसकी कौन-सी दशा होने वाली है। सिर्फ माता के वियोग से वह खिन्न हो गया था। हरिणी धीरे-धीरे आगे बढ़ी। बटोही भी उसके मन का भाव समझकर कुछ पीछे हट गया। हरिणी एक ही उछाल में बच्चे के पास पहुँच गई और अत्यन्त प्रेम से उसको चाटने सूँघने लगी। परन्तु उस मनुष्य को निकट आते देख झटपट कूदकर दूर हो गई और फिर भी दुःखित मुद्रा से उसकी ओर एकटक देखने लगी।

यह अद्‌भुत प्रसंग देखकर पथिक का हृदय दया से आर्द्र हो गया। हरिणी का वात्सल्य भाव अवलोकन कर उसके मन में अनुकम्पा का प्रादुर्भाव हुआ। कारुण्य आदि उत्तमोत्तम चित्त-विकारों से छाती धड़कने लगी। माँ और बच्चे को एकत्र देख इतना आनंद हुआ कि वह फूला न समाया। अन्त में मानसिक उत्साह का प्रभाव तथा पवित्र