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बात कहते जिससे हमारे सरकार खुश होते, तो तुम्हारा काम भी हो जाता।"

इस मुँह-देखी बातें करने वाले मनुष्य को अब क्या कहें, बिचारा सुभाषित का महत्व नहीं जानता। समयोचित भाषण करने से चतुर पुरुष को कितना आनन्द होता है, यह उसको मालूम नहीं है। यद्यपि यह धनवान मनुष्य पैसे की गर्मी से अंधा हो गया है तो भी उसके मन को शिक्षा का कुछ संस्कार हुआ है। अतएव इसके सामने सुभाषित की प्रशंसा करना अनुचित न होगा। ऐसा अपने मन में सोचकर पंडित जी ने कहा––"हे महाराज,

पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्।
मूढैः पाखाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते॥

इस पृथ्वी में अन्न, जल और सुभाषित––ये ही तीन मुख्य रत्न हैं। मूर्ख लोग हीरा, माणिक आदि पत्थर के टुकड़ों को 'रत्न' कहते हैं।" यह सुनकर श्रीमान गृहस्थ अपने मन में बड़ा ही लज्जित हुआ।