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मेरा डॉ॰ सिंह से बहुत ही विनम्र अनुरोध है कि वे सप्रेजी द्वारा सम्पादित 'छत्तीसगढ़मित्र' की फ़ाइल अवश्य देखें, तब उन्हें यह सष्ट हो जायेगा कि वे अंग्रेज़ी साहित्य के कितने निकट थे। यह निर्विवाद तथ्य है कि टॉल्सटाय या गोर्की से भी अधिक संसार के कथा-साहित्य पर एन्तोर जे॰ राव (सन् १८६०-१९२४) का प्रभाव पड़ा है। वे नगण्य घटनाओं के द्वारा चरित्र का उद्घाटन करते थे। प्रभाव के लिए, प्रभाव के बदले जीवन के लिए प्रभाव ही उनका आग्रह था। छोटे-से-छोटे कलेवर में अधिक-से-अधिक जीवन-आदर्श वे रखते थे। इस प्रकार लघुकथा (शार्ट स्टोरी) की झलक आप 'एक टोकरी भर मिट्टी' में देख सकते हैं।
अन्त में, यह संग्रह प्रस्तुत करते समय परम श्रद्धेय श्री श्रीनारायण चतुर्वेदी का हृदय से आभारी हूँ कि उनके प्रयत्न एवं प्रेरणा से ही यह कार्य सम्पन्न हो पाया है। उन्होंने 'स्पष्टीकरण के दो शब्द' लिखकर इसे उपकृत किया है। यहाँ श्री कमलेश्वर की चर्चा इसलिए आवश्यक है कि यदि उन्होंने 'सारिका' में इस 'प्रसंग' को उठाकर हिन्दी-प्रेमियों के समक्ष सही स्थिति का आकलन करने का अवसर दिया। साथ ही डॉ॰ भालचन्द्र राव तेलंग ने 'अन्तर्भाष्य-समीक्षा' लिखकर मेरा उत्साहवर्धन ही किया है।
––देबीप्रसाद वर्मा