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'चन्द्रकांता', 'चंद्रकांता संतति' तथा 'भूतनाथ' जरूर पढ़ा होगा और न पढ़े हों तो कहानी और उपन्यासों की विभाजन-रेखा खींचने के निमित्त उसके साथ निम्नलिखित तत्कालीन उपन्यासों को जरूर पढ़ लें––परीक्षा-गुरु, नूतन ब्रह्मचारी, सौ अजान एक सुजान, सती सुखदेवी, दो मित्र, धूर्त रसिकलाल, निःसहाय हिन्दू, ठेठ हिन्दी की ठाठ, काजर-कोठरी, कुसुम कुमारी, नरेन्द्र मोहनी, वीरेन्द्र वीर, त्रिवेणी, प्रणयिनी-परिणय, आदर्श रमणी, आदर्श बाला, और सास-पतोहू। और, यदि इसके बाद भी वे इसका अन्तर न समझें, तब क्या कहा जाय?
डॉ॰ सिंह का सबसे बड़ा दावा उपन्यास का कहानी होने का 'हीरक जयन्ती' अंक 'सरस्वती' है। उनके ही शब्दों में 'नूतन ब्रह्मचारी' को कहानी कहा गया है। यह टिप्पणी 'इन्दुमती' कहानी के ऊपर छपी है। परन्तु अंक के सम्पादक ने 'सरस्वती की कहानी' शीर्षक १७ पृष्ठीय लेख में 'नूतन ब्रह्मचारी' को कहीं भी कहानी नहीं लिखा है। पृष्ठ १६ में गोस्वामी से वृन्दावनलाल वर्मा, गुलेरी, रामचन्द्र शुक्ल, बालकृष्ण शर्मा, कौशिक, सुदर्शन, ज्वालादत्त शर्मा से लेकर भगवतीचरण वर्मा, इलाचन्द्र जोशी, उषा देवी मित्र और अमृतलाल नागर की चर्चा की है।
इसी लेख के पृष्ठ ७ में उन्होंने सन् १९०० के संदर्भ में यह लिखा है––इसी प्रकार हिन्दी में गम्भीर साहित्यिक विवाद का श्रीगणेश 'नैषधचरित चर्चा' और 'सुदर्शन' से होता है। प्रसिद्ध विद्वान् और अपने समय के शीर्ष लेखक पं॰ माधवप्रसाद मिश्र 'सुदर्शन' के सम्पादक थे। 'नैषधचरित' की उन्होंने समालोचना की थी। उसी का यह उत्तर था। कहानी साहित्य का एक प्रकार है। किन्तु डॉ॰ सिंह यही कहेंगे कि तत्कालीन साहित्यकार कहानी और उपन्यास समझते ही नहीं थे और न उसकी विभाजन-रेखा ही खींच सकते थे।