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मैं विशेष अहमियत नहीं देता, क्योंकि भारतीयता की अवधारणा पहले साफ़ होनी चाहिये; विदेशी वातावरण में रखकर भी कहानी की स्थिति को भारतीय बनाया जा सकता है। उस समय की कहानियों के बीच 'इंदुमती' की विशिष्टता वातावरण के जरिये स्थापित नहीं होती।
इसके समानान्तर माधवराव सप्रे की 'एक टोकरी भर मिट्टी' को देखा जाय तो इसकी अलग विशेषताएँ हैं––उन कहानियों के बीच यह आसानी से खो नहीं सकती। अगर रचना-काल का मिलान करें तो 'इंदुमती' और इसमें कोई खास फ़र्क नहीं है। इसकी मौलिकता पर यह कहकर संदेह उठाया गया है कि यह 'नवशेरवाँ का इंसाफ़' का रूपान्तर है। प्रारंभिक काल की कहानियों का संबंध दो स्रोतों से रहा है––एक संस्कृत कथाओं; और दूसरा, फ़ारसी की कहानियों का (हिन्दी साहित्य कोश : भाग २, पृ॰ २३७)।
एक स्रोत और था लोककथाओं का। 'नवशेरवाँ का इंसाफ़' की जो कथा है, वैसी तमाम कथाएँ अब भी लोक-प्रचलित हैं। 'एक टोकरी भर मिट्टी' पर अगर छाप है तो लोककथाओं की ही है, फ़ारसी कहानी की नहीं। इस कहानी को इसलिए भी पहली कहानी का गौरव दिया जाना चाहिए कि एकसाथ यह लोक कथा के स्तर को भी छूती है और साहित्यिक कहानी के स्तर पर भी पहुँचती है। उस समय लिखी जाने वाली कहानियों से यह अलग है, इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यह है कि समूह के पत्र में प्रकाशित न होकर एक सर्वथा भिन्न जगह प्रकाशित हुई। सप्रेजी की कहानी को हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी मानने के और भी कई कारण हैं। इसका शिल्प एकदम अलग है और इस तरह के शिल्प का प्रतिनिधित्व करता है जो आगे के दशकों की कहानियों में क्रमशः विकसित होता गया। इस कहानी और आज की कहानी में एक क्रम सहजता से स्थापित किया जा सकता है। अतिशय भाव-प्रवणता अथवा अतिशय कुतूहल को छोड़कर पहली बार यह कहानी सामाजिक संदर्भो को विकसित करती है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसका