पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/१९

यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(२०)

प्रति अगाध श्रद्धा का निर्माण किया, अपितु सप्रेजी को मेधावी लेखक के रूप में निर्मित करने में सफल हुए।

यदि कहानी को जीवन की कल्पनामूलक गाथा कहें, तब वास्तविकता की प्रतीति तथा प्रामाणिकता के लिए कहानी को अपने जीवन से संपृक्त रखना अनिवार्य शर्त हो जाती है और यही कारण है कि कथाकार उसी दिशा में निरन्तर प्रयत्नशील रहता है। सप्रेजी आरम्भ से ही सामाजिक अव्यवस्था के विरोधी तथा गरीबों के मसीहा थे। राष्ट्रप्रेम उनके हृदय में कूट-कूट कर भरा था। वे कहानी विधा को सही रूप देने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील थे। उनकी संक्षिप्त कथायात्रा हम यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं। 'छत्तीसगढ़मित्र' में प्रकाशित उनकी कहानियों की सूची इस प्रकार है––

(१) सुभाषित-रत्न–– जनवरी, १९००
(२) सुभाषित-रत्न–– फरवरी, १९००
(३) एक पथिक का स्वप्न–– मार्च-अप्रैल, १९००
(४) सम्मान किसे कहते हैं–– मार्च-अप्रैल, १९००
(५) आजम–– जून, १९००
(६) एक टोकरी भर मिट्टी–– अप्रैल, १९०१

यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि भारतेन्दु-युग में कहानी का कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं बन पाया था। उस युग का अनुवादों का युग कहना ठीक होगा और उससे हटकर जो कहानियाँ आ रही थीं, उनके मूलस्रोत दो थे––

(१) संस्कृत कथाएँ।
(२) लोककथाएँ।

साथ ही भारतेन्दु के पश्चात् हिन्दी कहानी पर बँगला की छाप अधिक दिखाई देती है। पर, सप्रेजी इन तीनों से हटकर कहानी का भी सही स्वरूप प्रस्तुत करना चाहते थे। इस दिशा में किए गए उनके