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रूप है। मानव-जीवन की वास्तविकता मानव को मानव समझने में है। 'जियो ओर जीने दो' से ही जीवन का सर्वाङ्गीण विकास संभव है। कहानीकार ने आजम को बहिर्मुखी से अन्तर्मुखी बनाकर नायक को कुंठा और पलायनवाद से बचा लिया है। ईश्वर के प्रति विश्वास ने उसे मानव-जीवन के शाश्वत मूल्यों का ज्ञान दिया। भारतीय जीवन-सिद्धान्त की युगानुरूप व्याख्या भी यही है।

'एक टोकरी भर मिट्टी' दो पेजी मर्मस्पर्शी कहानी है। कहानी के क्षेत्र में संवेदनशील भावना का समुदय तथा मानवीय दायित्व को रूपायित कर लेने की परिकल्पना यहीं से आरंभ होती है। कहानी का आरंभ है––'किसी श्रीमान जमीनदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी।' यही वह झोंपड़ी है जिसके आलोक में घटनाओं का ताँता लगता है। दूसरे शब्दों में Stream of Consciousness, अर्थात् चेतना-प्रवाह का यहीं से आरंभ होता है और इसी की परिणति संवेदना में होती है जिसकी प्रभावान्विति तथा प्रभाव-समष्टि कहानी को प्रथम संवेदनाशील कहानी का स्थान देती है। 'झोंपड़ी' को यहाँ चरित्र मानना चाहिए जिसके चारों ओर कार्य-व्यापार घूमते हैं। मानव की यह सहज वृत्ति रही है कि वह अधिक से अधिक हथियाना चाहता है। स्थितियों का निर्माण इसी धरातल से होता है। झोंपड़ी जहाँ विधवा के पति-पुत्र-पतोहू की स्मृतियों से जुड़ी हुई होने के कारण ममता की झोंपड़ी है वहाँ सीमा पर झोंपड़ी होने के कारण वह साधन-सम्पन्नता के लिए हथिया लेने के आग्रह की वस्तु है। परिस्थिति-योजना ही यहाँ कहानीकार का कौशल है। धनमद से अंधे जमींदार ने बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर अदालत से हुकुम निकलवा कर विधवा और उसकी पाँच साल की पोती को उस झोंपड़ी से निकलवा कर अपना कब्जा करवा ही लिया। पाठकों की सहानुभूति विधवा की ओर हो जाती है। निस्सहाय विधवा की भावनाओं को जबर्दस्त ठेस पहुँचती है, पर पाँच बरस की छोटी पोती ने जब खाना-पीना छोड़