पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/१४

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में कहीं खो गया हो। कहानी अधूरी लगती है। झबेला और फोटू के भविष्य को जानने के लिए पाठकों के पास कोई संकेत नहीं है।

'आजम' कहानीकार के शब्दों में गोल्डस्मिथ के आधार पर रची हुई शिक्षा-विधायक एक कहानी है। इस कहानी-रचना की मूल भावना जीवन-रूप दर्शन है। नीत्शे की यह धारणा भी यहाँ स्पष्ट होती है कि व्यक्तियों के संकल्पों में परिवर्तनशीलता के कारण सभी स्थापित मूल्य मूल्यों के निर्मूल्यीकरण के आवश्यक साधन हैं। इससे शक्तिशाली संकल्पों के सहारे श्रेष्ठ मूल्य स्वतः स्थापित हो जाते हैं। आजम को कहानी का नायक बनाकर कहानीकार ने विभिन्न धर्मों की विद्वेषता की जड़ निष्ठा के बीज को नष्ट कर देने का प्रयास किया है। एक ही चरित्र पर केन्द्रित होने वाली इस कहानी का आरंभ है––'यह पुरुष पहिले बहुत धनवान था......।' कौतूहल और जिज्ञासा लेकर चलने वाली यह कहानी शीघ्र ही अपने मध्य-बिन्दु पर पहुँच जाती है और जीवन के परम्परागत मूल्यों का संघर्ष जीवन के सामयिक मूल्यों से हो जाता है और नायक पलायनवादी बन 'तापस' नामक गगनचुम्बी पर्वत की गुफा में आ बसता है और उस आरण्यक में नैतिकता की तलाश करता है। ईश्वरीय सृष्टि की मनोरम गोद उसकी आस्था को उदात्त, व्यापक तथा समर्थ बनाती है। निसर्ग के सौन्दर्य के सामने वह भौतिक जगत् को तुच्छ समझता है और धीरे-धीरे अपने आपको दीन, हीन, अज्ञान और नैराश्य-सागर की भँवर में डूबता-उतराता पाता है। एक दिन जलाशय की सुन्दरता में जलसमाधि ले लेना चाहता है। ईश्वर का भेजा देवदूत उस भक्त के अनेक संशयों के उच्छेदन तथा परोक्ष अर्थ को समझाने के लिए उसे इससे दूर एक नई सृष्टि में ले गया जहाँ दुर्गुणरहित लोग रहते थे। वहाँ वह देखता है कि अरे यहाँ तो क्षुद्र जीवों का यह हाल है कि वे मनुष्यों को त्रास देते हैं। इस जीवदया से मानव-योनि को खतरा है। उसे प्रतीत हुआ कि ईश्वर के बाद मानव ही सबसे बड़ा सर्जक है और ज्ञान उसकी सर्जनात्मकता का उत्कृष्ट